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ज्ञेय-वस्तुके, चार निक्षेपमें- दृष्टांत.
(५)
अर्थ - इससे प्रथमकी गाथामें एसा कहाथाकि, साधुओं को मृतक स्त्रीका, कलेवरसेभी भय हैं, इस वास्ते चित्रमें चित्रीहुई स्त्रीको, वा, अलंकारवाली स्त्रीको, अथवा अलंकारविनाकी स्त्रीकोभी, ध्यानपूर्वक देखें नही, अगर, स्वभावसे दृष्टि पडजावे तो, सूर्यकी प्रति पडी हुई दृष्टिकीतरां संहारण करले ५५,
इसगाथा में, चित्रकी स्त्रीकोभी, देखनेका, निषेध करनेसें, स्त्रीका स्थापना निक्षेपकाभी, त्याग करणा ही दिखाया है २ । अब साधु पुरुषोंको स्त्रीका द्रव्य निक्षेपभी, त्याग करने रूपही सिद्ध होता है, जैसेंकि, स्त्रीत्वभावकी पूर्व अवस्था, बालिकारूपका, संघन करना, निषेध किया है, तैसें स्त्रीकी अपर अवस्थारूप, मृतक देहभी, साधु पुरुषोंको, भयही दिखाया है, इसवास्ते स्त्रीका. द्र
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व्यनिक्षेपभी, त्याग करनाही योग्य हुवा 3 || इस लेखसें यही सिद्ध हुवाके, साधु पुरुषोंको - स्त्रीरूप हेय वस्तुका, चारोंनिक्षेपभी हेयरूपही है । तैसें साध्वी को, पुरुषरूप वस्तुकाभी, चारोंनिक्षेप त्यागही करना सिद्ध है. इसवास्ते हेयरूप वस्तुका, चारोनिक्षेपभी, त्याग करने केही योग्य है
इति रूप वस्तुका चारोंनिक्षेप, त्याग करणेरूप प्रथमो धिक्कार ॥ ..
अब शेयरूप वस्तुका, चारनिक्षेपसें, ज्ञानप्राप्ति करनेरूप, द्वितीय अधिकार लिख दिखावते है - जैसे कि - मेरुपर्वत, जंबूद्वीप, नदी द्रह, कुंड, भरतादिक्षेत्र, सिंह, हंस, भारंडपंखी, हाथी, घोडा, हिंदूस्थान, जड़ी, बुटी, विगेरे नाना प्रकारकी ज्ञेय वस्तुका, नामदेके,
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