Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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परमोपादेय-वस्तुके चार निक्षेपमें-दृष्टांत.
(७)
निक्षेप भी, परमोपादेयस्वरूपके ही है । उनका विचार करके दिखावते है ।
जैसे कि--वर्तमानकालके तीर्थंकरोंका, जन्म हुये बाद,उनके माता पितादिकने, अनादि सिद्ध शब्दोंमेंसे, अनेक गुणोंको जनानेवाले ऋषभ आदि शब्दोंको लेके महावीर पर्यंत, जो नामका निक्षेप किया है, सो जैनी नामधारी मात्र भी, उनका-स्मरण, भजन, सदा सर्वकालमें करते हा है,इस वास्ते यह तीर्थकरोंका, नाम निक्षेप भी, परमोपादेय रूप ही है. १ ॥
॥ और अपना परम पवित्र रूप शरीरमें निरपेक्ष होके, नासिकाका अग्रभागमें दृष्टिका आरोप करके, परम वैराग्य मुद्रायुक्त, प. रमध्याना रूढमें रहैं हुयें, तीर्थंकरोंकी, आकृतिका उतारा रुप, जिन मूर्ति है सोभी, स्थापना निक्षेपका विषय स्वरुपकी, भक्तजनोंको परम उपादेय रुप ही होगी।
और जिस जिनेश्वर देवकी-बालकपणेके स्वरुपकी-पूर्व अ. वस्थाको,और मृतकशरीररूप-अपर अवस्थाको,इंद्रादिकोनेभी,परमसत्कारादिक किया है सो-द्रव्य निक्षेपका विषयभी, हमारेजैसे अ. ल्पपुण्यात्माको तो, अवश्यमेव परम उपादेयरूप हीहै ॥३ ___ और साक्षात् जो तीर्थकरहै सो, भावनिक्षेपका स्वरूप है, सोभावनिक्षेप पूज्यरूप होनसें, उनके-जानोनिक्षेपभी,अवश्यमेव पूज्यबु द्धिको उत्पन्न करानेवालेहीहै ।। ४ ॥ इति परमोपादेय, तीर्थंकरोंका, चार निक्षेपकर स्वरूप.॥
॥ अथ ढूंढनी पार्वतीजीका लेख ॥ श्री अनुयोगद्वार सूत्रमें आदिहीमें-वस्तुके, स्वरुपके समजनेके लिए-वस्तुके सामान्य प्रकारसें-चार निक्षेपे, निक्षेपने, (करने)
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