Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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महा निशीथ सूत्र पाठका विचार. (१६१) हस्थ संबंधी धर्मके कार्यमें-साधु अधिकारी नहीं है,और वह साधु अनेक प्रकारके आरंभ समारंभवाले कार्यको करें तो-मार्ग भ्रष्टभी गिने जायगा । परंतु श्रावक है सो तो-शक्तिमान हुवा ते कार्यको नही करनेसें ही निंद्याकापात्र गिना जाता है. ॥ इस वास्ते, जो जिसका अधिकारी होगा-सोई व्यवहार योग्य माना जायगा, और लाभकी प्राप्तिभी-उसीसे ही होगी, परंतु विपरीत विचारसे तो कभीभी लाभकी प्राप्ति हो सकती नहीं है. । शरीरकी शोभादायक गहना है सोभी, योग्य स्थानपै पहना हुवाही शोभादायक होगा,
और अयोग स्थानपै पहन लेंगे सो तो, केवल सर्व व्यवहारसे अज्ञ, हांसीकाही पात्र बनेगा, तैसें, तुम ढूंढको जिन मूर्तिको त्यागके इस भवमें, और परभवमें भी हांसीके पात्र मत बनो ।। और यह मूर्तिपूजन-निषेधका पाठ, क्या इस ढूंढनीकोही हाथ लग गया है, ? क्या और किसी आचार्यने पढा नही होगा ? हां बेशक, पाठ तो पढाही होगा परंतु तुमेरे ढूंढकोकी तरां विपरीत अर्थ नही स. मजे होंगे ? इस वास्ते इस पाठको जूठा चर्ची अपना और अपने आश्रितोंके धर्मका नाश करनेका उद्यम नहीं किया है ? तुमने इतना विशेष किया है । और नियुक्तिका अर्थमें, जो ढूंढनीने पृष्ट. १३५ से-मन कल्पित अर्थ करनेका दिखाया है, सोभी अपना,
और अपने आश्रितोंके धर्मका नाश करनेकाही दिखाया है । इसी कारणेसेही बावीस टोलेमें-अनेक प्रकारका तो प्रतिक्रमण, ।
और विचित्र प्रकारकी-क्रियाओ, । और विचित्र प्रकारकाही-उपदेश करनेकी पद्धतिआं, हो रही है । और कोइ पुछे तब-उत्तरमें, परंपरा वताना । और सूत्रसे मीलती २ बात हम मानते है वैसा कहकर, कोईभी प्रमाण बताना नहीं । और यद्वा तद्वा कहकर-लो. कोंको बहकाना । और मनः कल्पितही अर्थ-ठोकते चले जाना ।
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