Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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मूढताका त्यागीसो कल्याणकापात्र. (२५३ ) है, ( अर्थात् ग्रंथको उपर उपरसें ही देख लेते है ) और अपनी पंडिताईको प्रगट करते है । परंतु ते वाणीरूपी वेलडीका तात्पर्यरूप फल क्या है, उसकी तरफ देखनेका भी उत्साह, ते मूढ पुरुषो नहीं धारण करते है ॥ १ ॥ इति कान्यार्थः संपूर्णः ॥ __इस काव्यमें तात्पर्य यह कहा गया हैकि-जो जो तत्के मूल सिद्धांतो है, उनकी व्याख्यारूप नियुक्तियां, भाष्यों, टीकाओ, प्रकरण आदि ग्रंथो है, सोभी गुरु मुखमें पढ करके, उनका अर्थ मिलाया हुवा है, तोभी जब तक विशेष विचारमें नहीं उतरता है, तब तक ते ग्रंथों के-तत्त्वका रहस्य, कवी भी नहीं मिला सकता है । तो पिछे टीका कारादिक सर्व महा पुरुषोंकी अवज्ञा करने वाले, ते मूढ पुरुषो, गुरुजान बिनाके, मूल मात्रका सिद्धांतोंसेंतस्वका रहस्य, कहांसें मिला सकने वाले है ? । अपितु तीन कालमें भी न मिला सकेंगे।
॥ इत्यलं विस्तरेण ॥ ॥ इति श्रीमद्विजानंद सूरीश्वर शिष्येन मुनिनाऽमर विनयेन. ढूंढक हृदय नेत्रांजन प्रथम विभागे, विचार सार विवेको दर्शितः स समाप्तः ॥
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