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ढूंढनीजीकी-मूर्तिपूजाका, विचार. (१७३ ) निशीथ सूत्र, ८ जीवाभिगमसूत्र, आदि सूत्रोंका मूलपाठोंमें, जो साक्षात्पणे, किसीजगें "शास्वती प्रतिमा ” ओंका पाठ। किसीजगे-अरिहंत चेइयाई. करके पाठ । और किसजगें, "जिनपडिमा ” करके पाठ-प्रगटपणे शास्त्रकारों लिख गये है। और शास्वती प्रतिमाओंका तो-अंगो अंगका, भिन्न भिन्नपणे, सविस्तर वर्णन, प्रमाण सहित-लिख गये है। और अशाश्वती प्रतिमाओंका भी-आकृति, उनके ही अनुसारसे बनाई गई है । सो जिनमूर्ति सिद्धांतसे भी सम्मत, और यह धरतीमाताकी साक्षीसे भी-स. म्मत, ते सिवाय परमतके शाखोंसे भी, यह वीतराग देवकी मूर्तिसम्मत | उस विषयमें, यह ढूंढनी, कभी तो कहती है कि-सूत्रोंमेमूर्ति, चली ही नही है । कभी तो कहती है, मूत्तिका जिकरही नहीं है, ॥ तो हम ढूंढकोंको, पुछते है कि--जब जिन मूर्तिका, सूत्रोंमे-जिकरही नहीं होता तो पीछे, ढूंढनीको, सूत्रोंका पाठकोलिख लिखके, जूठा खंडन करनेका-प्रयत्न ही, किस वास्ते करना पडा.॥
हे ढूंढकभाइयो । हृदय उपर अज्ञानका जो पाटा चढाया है उनको छोडके, विचार करो ? कि, हम लिखके क्या आते है, और पोछेसे क्या कहते है। केवल तुम अपना ही लिखा हुवाका-विचार करोकि-जिससे तुमको कल्याणका मार्ग हाथ लगजाय ? ॥
देखो सत्यार्थ पृष्ट. १४७ में-विवाह चूलियाका पाठमें, वर्तमान २४ तीर्थकरोंकी मूर्तियां । और अतीकालकी २४ तीर्थक रोंकी भी प्रतिमाओं । और अनागत २४ तीर्थंकरोंकी भी प्रतिमाओं होती है । और. वंदने, पूजने, भी योग्य है ॥ वैसा भगवंत महावीर स्वामी, गौतस्वामी महाराजको फरमा रहै है । तो पीछे तूं
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