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( १७४ ) ढूंढनीजी की मूर्तिपूजाका, विचार.
ढूंढनेवाली ढूंढनी कैसे कह सकती है कि वारां वर्षों कालके पीछेसे, जिनमूर्तिका वंदन, पूजन, चला है । और भगवती सूत्रका, और नंदमणियारका, उदाहरण देती है, सो किस उपयोग वास्ते होगा ? सो तो प्रसंगही दूसरा है, इस जिनमूर्तिका खंडनमें क्या उपयोग होनेवाला है ? ऐसे तो हजारो प्रसंग शास्त्रों में आते है |
और फिर लिखती है कि - जो कहते हैं कि, जिनमूर्त्तिं पहिलेसे ही चली आती है, इसमें कोई प्रमाण तो हे नहीं, ॥
तो अब इसमें कहने का यह है कि, तुमेराही लिखाहुवा, विवाह चूलिया सूत्र पाठका - प्रमाण, क्या तुमको दिखा नहीं, ? जो कहती है कि-- प्रमाण है नहीं.
फिर लिखती है कि पहले भी - मृत्ति पूजा, होगी तो आश्रर्यही क्या है. ॥
इसमें आश्चर्य तो इतनाही हुवा है कि, तुम ढूंढको अपना और अपने आश्रितोंका, धर्मके विगाडा करनेवाले- अभीथोडे ही दिनोंसे - जन्म पडे.
फिर लिखती है कि जिन साधुओंसे, संयम नही पला होगाउन परिग्रह धारियों ने, अपना पोल लुकानेको, और ज्ञानभंडारा नामसे धन इकठा करने को, थापली होंगी.
ढूंढनी भद्रबाहु स्वामीसें पूर्व महाऋषियों को भी, कलंकित करनेका प्रयत्न करती है कि जिन साधुओंसे, संयम नही पला होगा, उन साधुओंन - मूर्त्तिपूजन, स्थापली होगी ? परंतु इतना विचार नही करती है कि जो भद्रबाहु स्वामी के पूर्व में साधु विचरतेथे, सो सवीभी निस्कलंकितही थे, और श्रावकोंमें मूर्त्तिका पू जन भी चला आताहीथा । परंतु चंद्रगुप्तने जबसे अनिष्ट स्वप्न
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