Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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तात्पर्य प्रकाशक दुहा बावनी. ( २३७ ) होती है ? । क्या यह जूठे जूठ, ढूंढनीजीके बेढंगापणाका, धांधल नहीं है ? ॥। ११ ॥
(१६) पृ. ७५ में, ढूंढनीजीने लिखा, सुधर्मा स्वामीजी का लेख सैंकडो पृष्टों तकका ऐसा है कि, जिससे हमारा आत्माका स्वार्थ सिद्धि नहीं होती है, तो क्या हमारे ढूंढक भाइयो, अपना जूठे जूठ- गंदा लेखोसें, अपना आत्माका स्वार्थकी सिद्ध, मानने को तत्पर हुये है ? | क्या ढूंढनीजीका यह जूठ नहीं है ? ।। १६ ।। ( १७ ) पृ. ७७ में — ढूंढनीजीने, बहवे अरिहंत चेइय, के पाठसे, जिन मंदिरोंका अर्थको मान्य करकें, दूसरा ( आयारवंत चेय ) का, पाठांतरका पाठको प्रक्षेपरूप, ठहरानेका — प्रयत्न किया ? | क्या ढूंढनीजीका यह जूट नहीं है ? ॥ १७ ॥
( १८ ) पृ. ७८ में ढूंढनीजीने अंबडजीका, पाठ लिखा है । और पृ. ७९ मे, अरिहंत चेइय, पाठका अर्थसम्यक ज्ञान, महाव्रत, अनुव्रतादिकरूप, करके दिखलाया है ? ॥ १८ ॥
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( १९ ) और पृ. ८७ में, आनंद श्रावकका अधिकारमें, इसी ही - अरिहंत चेइय, का पाठ, प्रगटपणे लिखके भी - सर्वथा प्रकार लोप करनेका, प्रयत्न किया है ॥ १९ ॥
( २० ) और. ट. १०९ में, चमरेंद्र के पाठार्थमें, इसी हीअरिहंत चेइय के पाठ पद शब्दको अपना घरमेंसें - जोड करके, केवली छद्मस्थका अर्थ करके दिखलाया है ? ॥ २० ॥
इस प्रकार - तीनों स्थानमें, अरिहंत चेइय, का एक ही पाठसें, जिन मूर्त्तिका प्रसिद्ध अर्थको छोड करके, मनः कल्पनासें भिन्न भिन्न प्रकारसें, अर्थ करके दिखलाया है । क्या यह ढूंढनीजीका जूठे जूठ नहीं है ? ||
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