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मूढताका त्यागीसो कल्याणकापात्र. ( २४३ )
हो ? | प्रथम देखो - समक्त्व शल्लयोद्धार, ढूंढक जेठमलजी के समकित सारका लेखमें, कितनी सत्यता आई है ? ॥
फिर देखो - गप्पदीपिका समीर | ढूंढनी पार्वतीजी की ज्ञान दीपिका में, कितनी सत्यता आई हुई है ? ||
फिर देखो - धर्मना दरवाजाने जोवानी दिशा, तुमेरे दोतीन-बडे बडे पंडितोने मिलकर बनाया हुवा-धर्मना दरवाजा, नामक ग्रंथ में, कितनी सत्यता आई हुई है ? ||
फिर देखो, यह ढूंढक हृदय नेत्रांजन, ढूंढनी पार्वतीजी - का - सत्यार्थ चंद्रोदयमें कितनी सत्यता आई हुई है ? ।।
और श्री अनुयोग द्वार सूत्र के मूल पाठका अर्थको, किस प्रकारसें विपरीतपणे समज्या है ? । और ढूंढनीजी के जूठा गर्वकी सीमा, कहांतक पुची है, सो अछीतरांसें रूपाल करो ? | केवलतीर्थंकरों को निंद्या, गणधर महा पुरुषोंकी भी निंद्या, और जैन ध की रक्षा करने वाले - सर्व जैनाचायोंकी भी निंद्या, के सिवाय तुमेरे ढूंढकों के हाथमें, कौनसा विशेष धर्म आया है ? ||
और जो दया दयाका जूठा पुकार करके, तीर्थकरों के सदृश तीर्थकरों की भव्य मूर्तियांकी, अवज्ञा करनेको तत्पर हो जाते हो सोतो, तुमेरी एक जातकी, मूढता हैं । परंतु वास्तविक प्रकारकी - दया नहीं है ? |
क्योंकि जब तक - सम्यक् ज्ञान पूर्वक, दया धर्म में प्रकृति - कीई जावे, तब तक दया धर्म, वास्तविक नहीं कहा जावेगा । किंतु-दया मूढता ही, कही जावेगी | क्योंकि - दीक्षा महोत्सव, मरण महोत्सव, साधुकी संघ यात्रादि, साधुके निमित्ते - आरंभवाले
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