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( २५०) मुढताका त्यागीसो कल्याणकापात्र. - इस बातको-अनुभवतें सिद्धपणे, देखलो दोनों तरफका लेखको मिलायके, यथा योग्य मालूम हो जायगा। हाथमें कंगण, तो पिछे- आरसाका, क्या काम है ? ॥
प्रथम देखो-सूत्रोंकी पारगामिनी, पंडिता ढूंढनी पार्वतीजीको एक दया मूढताके योगसें, सारा सारका-विचार, कितना कर सकी है ?।
तुमको-बिचार करनेका, बोजा कभी हो जानेके वास्ते-इसारा मात्रसें, मैं भी दिखाता हुं । सो उनके अनुसारसे विचार करते चलेजाना, यथा योग्य मालूम हो जायगा ॥
देखोकि-ढूंढनी पार्वतीजीने, सत्यार्थ. ए. १७२ में, लिखाथाकि-जूठ बोलना पाप है, इसलेखके विषयमें, हमने हमारा तरफका बावनमा [५२] दुहामें, सूचना किईथीके-नहीं जूठका अंत, ऐसा लिखके, जो सतावीश कलमसे, ढूंढनीजीके जूठ पणेका, इसा. रा करके-दिखायाथा, वह सभीही कलमके साथ, यथा योग्य पणे दयामूढताको जोडकरके, विचार करना । ढूंढनीजीका लेख, दया वाला है कि-दया मूढताका है ? यथा योग्य मालूम हो जायगा ।। जैसेकि [१] ढूंढनीजीने-पिछली तीन नयोंको, सत्यरूप ठहरायके, प्रथमकी चार नयोंको, असत्यरूप ठहरानेका-प्रयत्न किया । सो ढूंढनाजीन-भव्य जीवोंके उपर दयाकीई है कि,दया मूढता ? ॥१॥
[२ १ नाम, २ स्थापना, यह दोनों निक्षेप-अवस्तु ठहराया। और-पूर्णभद्र यक्षादिकोंकी, स्थापना रूप-मूर्तिकी पूजासे, धन पुत्रादिककी प्राप्ति हानेका दिखाया । यह ढूंढनीजीन-भव्य जीवोंके उपर, दया कीई है कि-दया मूढता ? ॥२॥ ..
[३] द्रौपदीजीके विषयमें, अनेक प्रकारकी जूठी कुतकों
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