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(२४६ ) मूढताका त्यागीसो कल्याणकापात्र.
दया मूढताका हो राज्यकी प्रबलता मालूम होती है ? । नहितर हमारा परमोपकारी तीर्थकरोंकी, परमशांत मूर्त्तिकी पूजाको छुडवायके, मिथ्यात्वी जो पितरादिक है, उनकी क्रूर मूर्तियांकी, दररोज पूजा करानेको क्यौं तत्पर होते ? ।
इस वास्ते मालूम होता है कि, हमारे ढूंढक भाइयोंके अंतःक रणमें, कोई एक प्रकारकी मूढताका राज्यकी ही — प्रबलता हुई होगी ? |
इसी कारण से ही, हमारे ढूंढक भाइयां के हृदय में - सारा सारका विचार नहीं आता होगा ? |
और इसी ही कारण से, गणधरादिक सर्व जैन सिद्धांत कारोंका लेखसें भी, विपरीतपणे लेख लिखते है । हे ढूंढक भाइओ ! तुम दया दयाका जूठा पोकार करके, और वीतराग देवकी भव्य मूर्तियां की पूजाको छुडवायके, मिध्यात्वी देवोकी - भयंकर मूर्तियां, पूजानेको तत्पर होते हो
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परंतु थोडासा मध्यस्थ भावसें ख्याल करोंकि, जैन तत्रके विषयमें, आजतक दोनों तरफका लेख, जितना बहार आया है, उसमें एक लेखभी, तुमेरे तरफका सत्य स्वरूपसें प्रगट हुवा है ? | तुम अपने आप जैन सिद्धांतोसें मिलाके देखो, मालूम हो जायगा । किस वास्ते - जैन धर्म के निर्मल तत्वोंका, विगाडा करके, अपने आप जैन धर्मसें भ्रष्ट होते हो ? |
हमने यह लेख तुमेरा हितके वास्ते लिखा है । तुमने कोरा कष्ट बहुत भी किया, तोभी जैन तत्त्वका विमुखपणासें, और तीर्थकरों की भव्य मूर्तिकी निंदारों, और जैन धर्मके सर्व सद्गुरुओकी निंदारों, और जैन धर्मके सर्व तत्र ग्रंथों की निंदारों, तुमेरा
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