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वेदव्यास के वखतमें-ढूंढिये भी थे.
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डी देलें, परंतु उघाडे मुख न रहें ( न बोले ) इत्यादि || लिखके - फिर. पृष्ट. १७१ ओ. १२ से अब देखो जैन साधुका, वेद व्या सके समय भी - यही भेष था । तो सिद्ध हुवा कि ढूंढक मत, मा चीन है, २५० वर्ष से निकला, मिथ्यावादी - द्वेषसे, कहते है |
समीक्षा - अरे हठीली, अभीतक अपना जूठा हठको भीछोडती नही है ! तूंही तो तेरी, ज्ञान दीपिकायें - लिखती है कि, प्रथम मुखपरं मुहपत्तीको चढानेवाला, ' लवजी ' को हुये अढाईसो - वर्ष हुये है, और पंजाबी ढूंढियें श्रावक व्याख्यान उठनेके अंतमें, भजनमें भी कहते थे कि - प्रथम साध लवजी भया, द्वितीय सोमगुरु भाय ॥ ऐसें कहनेका परिपाटहीथा, अब इहांपर, अपना पोल लकोनेके वास्ते, सत्य शिरोमणि पणा - प्रकट करती ? | और सम्यक शल्योद्धारवाले महात्माको, मिथ्यावादी कहती है ? । वाहरे तेरी चातुरी ? जगेंगें पर स्त्रीजातिका, जूठा स्वभाबको ही दिखाती है ?
और ढूंढिये, चर्चा में सदा पराजय होते है, वैशा जो- सम्यक्क शल्योद्वारमें लिखा है, उसमे भी क्या जूठ लिखा है। जो तूं महात्माको जूठपका - कलंक देती है ? क्योंकि पांच सात जगे तो मेरी ही समक्ष, ढूंढिये साधु, चर्चा के समयमें, भगजानेका बनाव बन चूका है, तो न जाने उस महात्मा के बखतमें, क्या क्या बनाव हुवा होगा || देख प्रथम, टांडा अहियापुरमें, तेराही - सोहनलाल कि जो आजकाल पूज्य पदवी लेके फिरता है, सो हमारे पूज्य-कमल विजयजीके इस्तिहार निकालनेपर अपने इस्तिहार से सभामेंआनेका कबुल हो, और अमृतसर से - पंडित को भी बुलवाके, सभाके समय - अनेक तेडे करने परभी, हाजर न हुवा, और खिड़
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