Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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तात्पर्य प्रकाशक दुहा बावनी. (२१७ ) चैत्यसै जिनप्रतिमा कहैं, जगें२ ग्रंथकार । ढूंढनी मन गमतो करें, अर्थ अनेक प्रकार ॥ ३२ ॥
तात्पर्य-चैत्य, पदका अर्थ-जिन प्रतिमा,जैन सिद्धांतकारोंने, जगें जगें पर-वर्णन किया हुवा है। परंतु ढूंढनी पार्वतीजीने, ते चैत्य पदका अर्थ, जैसें मनमें आया तैसें ही-भिन्न २ प्रकारसें, गणधरादिक सर्व सिद्धांतकारोंको-अवज्ञाके साथ,करके दिखलाया है । सो ही हम क्रमवार सूचना मात्रसें, पाठक वर्गको याद कराते है, सो ख्याल पूर्वक विचार करतें चले जाना ॥ ३२ ॥ अंबडजीके पाठमें, कियो व्रतादिक अर्थ । लोपें अर्थ जिन मूर्तिका, कितना करें अनर्थ ॥ ३३ ॥
तात्पर्य-- अबंड श्रावकजीके अधिकारमें-अरिहंत चेइय, पाठका अर्थ-अरिहंत भगवानकी मूर्तिका, सर्व जैन सिद्धांतकारोंने जगें जगें पर किया हुवा है । और ते अर्थ योग्यपणे ही होता है क्योंकि-अरिहंत, कहनेसें तीर्थंकर भगवान, और-चैत्य, कहनेसें-प्रतिमा, अर्थात् अरिहंतकी प्रतिमा । इसका अर्थ ढूंढनीजीने सत्यार्थ. ए. ७८ से ८६ तक, लंब लंबाय मान-सम्यक् ज्ञान, सम्यक व्रत, वा अनुव्रतादिक, बे संबंधका करके दिखाया। देखो इनकी समीक्षा. नेत्रां. पृ. १०४ सें, पृ. १०८ तक ।। ३३ ।। रुचक नंदीश्वर द्वीपमें, मार्त वादे सु पेर। जंघा चारण मुनिवरा, दिखावें ज्ञानकोढेर ॥३४॥ ___ तात्पर्य-जंघा चारण विद्याचरणकी-लब्धि, जिस मुनियांको हो जाती है, ते मुनिओ-रुच द्वीपमें, नंदीश्वर द्वीपमें जाके.-चेइ
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