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तात्पर्य प्रकाशक दुहा बावनी.
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णा-योग्यपणे सेंही सिद्ध होता है । किस वास्ते तीर्थंकरोंकी-अवज्ञाकरके, अपना संसारकी वृद्धि करले ते हो ? ॥ २८ ॥ हित सुख मोक्ष के कारणे, पूजे शाश्वत बिंब । व्यवहारिक कर्त्तव्य कही, रोपें कडवा नींब ॥ २९ ॥
तात्पर्य देवलोकमें, शाश्वती जिन प्रतिमाओंका पूजन, देवताओ अपना-हित, मुख, और परंपरासें मोक्षका कारण समज के, सदा करते है । ते देवताओंका-जिन पूजनको, ढूंढनीजी केवल-लाभ बिनाका, व्यवहारिक कर्म कह करके-कडवा नींवका रोपा लगाती है। परंतु इतना मात्र भी विचार नहीं करती है कि-सम्यस्क दृष्टि जीवोंकी करनीका लोप, मैं कैसे करती हुँ ? देखो. नेत्रां० पृ. ९३ सें ९४ तक ॥ २९ ॥ नमोथ्थुणं के पाठसें, करें वंदना देव । तामें कुतर्क करी कहैं, परंपराकी सेव ॥ ३०॥ .. तात्पर्य देवलोको, इंद्रादिक देवताओने-जे शाश्वती जिन प्रतिमाओंका पूजन, अरिहंतों की भक्ति के वास्ते, और अपना भवोभवका-हित, सुख, और मोक्षका-लाभ की आशा करके, किया ते । और अरिहंतोंकी-स्तुतिरूप, नमोथ्थुणं, का पाठको पन्या ते । ढूंढनीजीने-लाभ बिनाका, परंपराकी सेवारूप, सिद्ध करकेदिखलाया । और ते देवताओंकी तरां, अपना भवोभवका कल्याण कर लेने की इच्छावाली हुई-द्रौपदीजी परम श्राविकाने, अशाश्वती जिन प्रतिमाओंका-पूजन किया । और वही तीर्थंकरोंकी स्तुतिरूप-नमोथ्थुणंका, पाठ तीर्थंकरोकी मूर्तियांके आगे पढ़ा ! उस पवित्र पाठमें-जूठी कुतकों करके,जिन प्रतिमाको
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