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(१९०) दूढियोंके-पराजयका, विचार.
यथा योग शास्त्र, जब आचार हो तब उपदेश करनेको, अधिकार हो ।११ । भूले हो आप, भूलाते हो लोक; भगवानको छोड, चाह ते हो मोख ।१२ । महबत ल्यों, शरण भगवानकी; .
तो सोबत करो, साधु विद्वानकी ।१३। और सभाके हूयें वाद, दूसरे दिन-किसी पुरुषने, बजारमें एक इस्तिहार लगायाथा, उसकी नकल नीचे. मुजब--
अरे दूंढियों, क्यूं तडफ तेहो तूंम, तुमारा गुरु, सोन्हलाल हेजी कम, मुनिकमल विजयजीने, चर्चा करी, ईश्वरकी परकससें, महिमापरी १॥
"अलराकम हूसियार मरद." यहनीचे संकेतमे लिखके, अपना नामभी दिखायाथा ॥
इति प्रथम बनाव. अब दूसराभी बनाव सूनलों कि--सेहर हुस्यार पुरके पास जेजो गाममें-यही ढूंढक साधु सोहनलालने, एक आत्मारामजी पहाराजजी काविश्वासी-ब्राह्मणकी साथ, आत्मारामजी महाराजजीका लेख-जूठा ठहरानेको, प्रतिज्ञापत्र लिखाकि-मैं जूठा पडजाउं तों, साधु पणा-छोडदउं, नही तो मैं तेरेको-शिष्य बना लउं, अब ते जेजो गामसें उस ब्राह्मणकी पत्रिका, हुस्यारपुरमें हमारे गुरुजीकी पास आनेसे, गुरुजीकी आज्ञालेके, उद्योत. विजयजी, कांतिबिजयजी-आदि हम ५ साधु ते जेजो में गये, कई दिन तकरार चलते २ छेवट, सभाकरनेका-मुकरर, हुवा, सभा के वख्त अनेक सभ्यके बुलानेपरभी-तेरा पूज्य न आया, तब हमारे बडे साधु सभा बुला.
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