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( १७८) ढूंढिये सनातन, ग्रंथोंके गपौडे.
॥और यह भी तेरा किया हुवा, सत्यार्थ चंद्रोदय है कि, केवल जूठार्थका उदय है, सोभी यह हमारी किई हुई समीक्षासे, विचार कर?
। केवल मुखसे साधुपणा दिखानेसे तो कुछ साधु नही बन सकोंगे ? साधुपणा बनेगा तो आचरणसे ही बनगा।...
केवल कथनरूप तुमेरा सत्यवादीपणा है सो तो, तुमेरा आ. स्माका निस्तार करनेवाला कभी नहोगा । . ढंढनी-पृष्ट. १५७ ओ. ४ से. प्रश्नके विषयमें लिखती है कि-जैनियोंमें जो-सनातन ढूंढीये जैनी हैं, वह मूल सूत्रोंको ही मानते है, पुराणवत्-ग्रंथोंके गपौडे, नहीं मानते है, और जो यहपीले कपडावाले, जैनी हैं, यह पुराणक्त्-ग्रंथोके गपौडोंकों, मानते हैं, क्यों जी ऐसे ही है ।। उत्तर-और क्या ॥
समीक्षा-पाठकवर्ग । दृष्टांत होता है सो, एक देशीय ही होता है । यह ढूंढको नतो तीनमें, और न तो तेरमें, और नतो छपनके भी मेलमें, तो भी अपने आप सनातन बन बैठे है ? । जैसे कि-एक मूढ । धनाढय, विचक्षण-वेश्याका, भावको समजे विना, अपनी मानके, और सर्व धन गमादेके, परदेशसे-मित्रकी साथ, धन भेजनेलगा। उस मित्रने उसी वेश्यासे-प्यारेका, नाम पुछा सो वह मूढ धनाढय न तो तीनमें, न तो तेरमें, और न तो छपन के भी मेलमें, तैसे ही यह ढूंढको चोरासी गछमेंसे एक भी गछकी शाखा विनाके, एक गृहस्थसे अभी सन्मूर्छन रूप उत्पन्न होके अपने आप जैनमतकी चातुरी सपजे विना सनातन बननेको जाते है ?
सो कैसे बन जायगें: क्योंकि जिन ढूंढकोका प्राचीनपणेका
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