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( १६२) अथ तृतीय विवाह चूलियाका.
और सब पंडितोंको कुछ नही समजके-अपने आप पंडित मानी बन जाना । ऐसे विपरीत विचारवालोको तो साक्षात् तीर्थकरभी न समजा सकेगे । कहा है कि-ज्ञान लव दुर्विदग्धानां ब्रह्मापि तंनरं न रंजयति-तैसेंही हमारे ढूंढकोंके हाल हो रहे है ॥ और ढूंदनीने-इस पाठमेसें, उपदेशकोंको-अनंत संसारी ठहराया .सो तो सूत्रमें-एक अक्षरका गंध मात्रसेंभी नहीं है, तो पीछे ढूंढनी कैसे लिखती है ? परंतु जिसनेजो मनमें आवे सोइ बकना. ऐसेंको कहनाही क्या ? ॥
. ॥ इति महा निशीथका-द्वितीय पाठः॥
॥ अथ तृतीय विवाह चूलियाका, ९ वा पाहुडा, और ८ वा उद्देशाफा, पाठ जो ढूंढनी पृष्ट. १४७ से-लिखती है, सोई ह. मभी लिखके दिखावते है.. ॥ कइ विहाणं भंते, मनुस्स लोए-पडिमा, प
ण्णत्ता, गोयमा अणेग विहा पण्णत्ता । उसभा दिय वढमाण परियंते, अतीत, अणागए, चौवीसंगाणं तिस्थयर पडिमा । रायपडिमा । जरक पडिमा । भूत पडिमा । जाव धूमकेउ पडिमा. ॥ जिन पडिमाणं भंतेबंदमाणे, अच्चमाणे । हंता गोयमा वंदमाणे, अच्चमाणे॥ जइणं भंते जिण पडिमाणं-वंदमाणे, अच्चमाणे-सुय धम्मं,चरित्त धम्म,लभेजा,गोयमा णोणठे समठे। से केणठेणं भंते एवं वच्चइ, जिन पडिमाणं-वंदमाणे अच्चमाणेसुय धम्मं, चरित्त धम्म, नोलमेजा। गोयमा पुढविकाय
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