________________
( १६६ ) अथ तृतीय विवाह चूलियाका.
किया है या नही ? क्यों कि यह विवाह चूलीयाके पाठसे तो "जिन " अर्थात् ऋषभादिक चोवीस तीर्थकरों के नाम से " मूर्त्तियां " का कथन होने से, दूसरा- कामदेवका अर्थ, कभी नही सिद्ध हो सकता है और सूत्रका अर्थके अंतमें, ढूंढनी लिखती है कि जिन पडिमाके पूजते हुए - धर्म नहीं पावें, इति हसे भी - मूर्तिपूजा, मिथ्यात्व, और आरंभका, कारण- होने से, अनंत संसारका हेतु कहा है | अब इसमें भी देखीये - ढूंढनीजीकी - पंडितानीपणा - जब ऋषभादिक ७२ तीर्थकरोंकी - प्रतिमा होनेका, मन - गौतम स्वामीने किया तब तीर्थंकर महावीर भगवंतने भी यही कहाके - हा गौतम होती है । फिर तीर्थकरोकीही प्रतिमाको वंदन, पूजनका दूसरा प्रश्न किया, तबभी भगवंतने - यही उत्तर दिया, कि - हा - गौतम-बंदें, और पूजें । तोपिछे यह ढूंढनी - मिथ्यात्व और अनंत संसारका हेतु कैसें कहती है ? ॥ क्योंकि, धर्म है सोतीन प्रकारका है -१ सम्यक्त्व धर्म, २ श्रुत धर्म, और ३ चारित्र धर्म | इनतीनो धर्ममेसे, जो प्रथमका सम्यक्त्व धर्म हे उनकी प्राप्तिका हेतुमें मूर्त्तिका, वंदन, और पूजन, विषये प्रश्न करनेका प्रगटपणे मालूम होता है, उसकी तो भगवंतने हाही कही है, और जो तीसरा प्रश्न -*श्रुतधर्म चारित्र धर्मकी प्राप्तिके विषयका था उसकी ही प्राप्ति होनेकी जिन मूर्त्तिका वंदन पूजनसें ना कही है, कारण- श्रुत धर्म, और चारित्र धर्मका अधिकारी - साधु पुरुष है, और साधुको मूर्ति पूजनका - सर्वथा निषेध है । वही इस पाठसें दिखाया है तो पिछे ढूंढको मिथ्यात्वी है कि मूर्तिको वंदन, पूजन, करनेवाले मिथ्यात्व है ! हे ढंढनी तूं अपनाही लेखका वि
* श्रुतधर्म-गुरुमुख सिद्धांतों का पठन करनेसें, और चारित्रधर्म-अनेक प्रकारकी इछा वृत्तिको, रुकनेसे ही -माप्त होता है, इस वास्ते इनका अधिकारी मुख्यत्वे - साधु पुरुष ही, होता है ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org