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सत्यार्थसे - महानिशीथका, सूत्रपाठ.
(१५)
स्ते करते है ? क्योंकि तुम्हार में, ज्ञानकी योग्यता करानेवाला वही हुवा है | ऐसी कुत करनेसे कुछ तुमेरी सिद्धि नहीं हो सकती है. जो जिसका अधिकार होगा, सोही व्यवहार योग्य रहेगा. इत्थलमधिकेन.
इति प्रथम पंचमस्वम सूत्रपाठार्थका विचार ||
अथ द्वितीय, महा निशीथ तृतीय अध्ययन संबंधी, पृष्ट. १४४ सें, ढूंढनीका लिखा हुवा सूत्र, और अर्थ - यथा सूत्रतहाकिल अम्हे, अरिहंताणं, भगवंताणं, गंध, मल्ल, पदीव, समयणोव लेवेण, विचित्त वत्थ बलि धुपाइ एहिं, पुजासकारेहिं, अणुदियहं 'पद्यवणं पकुवरण, तित्थुप्पणं करोमि, ! तंच गोणं तहत्ति, गोयमा समगु जाज्जा, । से भयवं केण अठेणं एवं बुच्चइ, जहाणं तंच गोणं तहत्ति समगु जाणेज्जा । गोयमा तयत्यागु सारेणं, असंयम बाहुल्लेणंच, मूल कम्मासवं, मूलकम्मा सवाउय अज्जवसायं पहुच बहुल्ल सुहा सुह कम्म पयडीबंधो, सब्व सावज्ज विरियागंच वय - भंगो, वयभंगेरणच आणाइकम्मं, आणाइकम्मेणंतु उमग्ग गामित्तं, उमग्ग गामित्तेणंच सुमग्ग पलायणं, उ१ पज्जु वासणं पकुव्वमाणा || ऐसा पाठ होना चाहिये. ।। २ करेमो ऐसा पाठ होना चाहिये. ॥
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