Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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सावधाचार्य-और ग्रंथों. ॥ अब सावद्याचार्य-और ग्रंथोंका, विचार, करते है । - ढूंढनी-पृष्ट १२९ से ग्रंथोंमें सविस्तार-पूजा है ! इस प्रश्न के उत्तरमें लिखती है कि-हम ग्रंथोंके-गपौडे, नहीं मानते है, हां जो सूत्रसे मिलती बातहो, उसे मानभी लेते हैं, परंतु जो सावधा चार्योंने-मालखानको, मनमाने-गपौडे, लिख धरहैं, " निशीथ. भाष्यवत् ," उन्हें विद्वान् कभी नहीं प्रमाण करेंगें ॥
फिर. पृष्ट. १३० से-(३२) सूत्रको माननेमें-गणधर, प्रत्येक बुद्ध, दशपूर्व धारीयोंके रचे हुवे है, ऐसा-प्रमाण देके, दूसरे ग्रं. थोंको-सावधाचार्यका, कहती है । और कहती है कि-जिन ग्रंथोके माननेसे, श्री वीतरागभाषित-परम उत्तम, दया, क्षमा रूप, धमको-हानि, पहुंचती है। पृष्ट. १३२ से-अर्थात् सत्यदया धर्मकानाश, कर दिया है । फिर नियुक्तिके, प्रश्नमें-लिखती हैं कि-तुम्हारीसी तरह-पूर्वोक्त आचार्योंकी बनाई, नियुक्तियांक पोथे, अनघडितकहानीये गपौडेसे भरे हुये-नहीं मानते हैं । - यथा-उत्तराध्ययनकी, नियुक्तिमें-गौतम ऋषिजी-सूर्यकी किगोंको-पकडके, अष्टापद पाहाडपर-चढगये, लिखा है ।। आवश्यककी, नियुक्तिमें-सत्यकी सरीखे, महावीरजीके--भक्ता, लिखे है, इत्यादि. . __पृष्ट. १३५ सें-सूत्रके मूलमें, और सूत्रक के अभिमायसें, संबंधभी नहो-उसका कथन-टीका, नियुक्ति, भाष्य, चूणी में-सविस्तर कर धरना. मूर्ति पूजक ग्रंथोंमे-गपौडे लिखे है । ऐसा कहकर एक गाथा लिखी है-सेतुजे. पुंडरीओ सिद्धो, मुनिकोडि पंच सं. ज्जुत्तो । चित्तस्स पूणीमाए, सो भणइ तेण पुंडरिओ. १॥ इसमें सो १०० पुत्रवालेका दृष्टांत-पृष्ट. १३६ से-दे के १३७ में लिखती
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