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जपाचारणे-प्रतिमा, बांदी. (११९) रखाथा,? जो तूं कहती है कि,-ज्ञानकी स्तुति, करी, और इरिवहीका ध्यानका नाम-चैत्य वंदन है ? और जो-लोगस्स उज्जोय गरे का-ध्यानका नाम-चैत्य वंदन, कहती है सोभी तेरी समज विना काही है-नतो तुं पूजाका अर्थको समजतीहै, नतो-वंदनाका अर्थको समजतीहै, केवल थोथापोथा की रचना करके, अज्ञानांधो कों-धर्मसे भ्रष्ट करती है. । नतो जंघाचारण मुनिने-पूजा किईहै ।
और न शास्त्रकारने भी दिखाई है,। किसवास्ते पूजापूजाका पुका र करती है ? क्योंकि जिस मुनिको जंघाचारण की लब्धि होतीहै, सोही मुनि-नंदीश्वरादिक द्वीपोंमें, रही हुई-शाश्वती प्रतिमाओकी, यात्रा करनेको, अपणी-लब्धिका, उपयोग करते है। इसीवास्तेही यहशास्त्र सम्मत पाठ है । इसका लोपतो तेरे बावेकेभी बावेसे-नहीहो सकता है, किसवास्ते महापुरुषोंके वचनोका अनादर करके, अपणा आत्माको भवभ्रमणमें जंपापात कराती है ? । और-केवल ज्ञानकी, जो-स्तुति करनी दिखाती है, सोतो एकवचन रूपसे है। और- चेइयाई, यहपाठ है सोतो--बहुवचन रूपहै । नतो तेरेको - एकवचनकी, खबर है, और नतो-बहुवचनकी खबर है, केवल बे भान पनी हुइ, जूठाही पुकार करती है, इससे क्या--तेरी हितपणा की सिद्धि, हो जानेवाली है ? ॥ और उन मुनियोंने रुचकवर द्वीपमें नंदीश्वर द्वीपमें-जानेका जो उपयोग किया है. सो भी वहां के, शाश्वतें--मंदिर मूर्तियोंकी, यात्रा करने के लियेही, अपणी जं. घाचारणपणेकी लब्धिका उपयोग किया है । परंतु वहां--केवल ज्ञानका, ढेर को-वंदना, करनेके वास्ते नही गये है। और इहांपर भी अर्थात्--भरतादिक क्षेत्रमें, जो अपणी जंघाचारणपणेकी लब्धिसे-फिरते है, सोभी-जोजो महान् महान् तीर्थोंमें--वीतराग देवकी--अशाश्वती मूर्तियां, स्थापित किइ गई है, उनकी यात्रा कर.
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