________________
(९२)
सूत्रपाठमें कुतकी. कितही रहेंगे ? वैसा समजकर, उनकी शंका दूर करनेके लिये, सूत्रपाठका खोटा आक्षेपों पै, किंचित् मात्र--समीक्षा करके भी दिखला देते है. इससे यहभी मालूम हो जायगा कि, ढूंढको जैनाभास होके केवल जैनधर्मको कलंकित करणेवालेही है! सुज्ञेषु किमतिविस्तरेण.
॥ अब सूत्रोंमें मूर्तिपूजा नहीं ॥ ढूंढनी-पृष्ट ६७ ओ४ सें-सूत्रोंमें तो--मूर्तिपूजा, कहीं नहीं लिखी है, । यदि लिखा है तो हमें भी दिखाओ. ___ समीक्षा-पाठक वर्ग ! स्वमत, परमतके, हजारो पुस्तकोपर, 'जिन मूर्तिका' अधिकार--लिखा गया है. । और आज हजारो वरसोंसें, श्वेतांबर, दिगंबर, यह दोनोभी बडी शाखाके,-लाखों आदमी, पूजभी रहें है, । और कोई अबजोंके अवजोंका खरचा लगाके, संपादन किई हुई, करोडो 'जिन मूत्तिके विद्यमान सहित, आजतक एकंदरके हिसाबसे-छत्रीशहजार ( ३६०००) जिन मंदिरोंसे--पृथ्वीभी मंडित हो रही है । और यह ढूंढनीभी पृष्ट ६१ मेंलिखती है कि-हमनेभी बडे बडे पंडित, जो विशेषकर भक्ति अंगको मुख्य रखते हैं, उन्होंसे-सुना है कि,-यावद् काल ज्ञान नहीं, तावत् काल-मूर्तिपूजन हैं। और कई जगह-लिखाभी देखनेमें आया है। वेसा प्रथमही लिखके आई, और इहांपै लिखती है कि-सूत्रोंमें तो मूर्तिपूजा कहीं नहीं लिखी हैं, यदि लिखी होवें तो हमेंभी बताओ | विचार करो अब इस ढूंढनीको हम क्या दि. खावें ? क्योंकि जिसके हृदयनेत्रोंमें वारंवार छाई-आजाती है, उनको दिखेगाभी क्या ? ॥ और जो मूलसूत्रोंमें-जिन प्रतिमा पूजनके प्रगटपणे साक्षात् पाठ है, उनकोभी-कुतकों करके बिगाडनेको, प्रवृत हुई है, तो अब इसको, हम किसतरां समजावेंगे ? हमारी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org