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(१०४) . अंबडजीका-सूत्रपाठ. प्रक्षेपपाठ किसको कहते है, और पाठांतर किसको कहते है, यहभी तेरी समजमें कहांसे आवेगा ? केवल मिथ्यात्वके उदयसे प्रगटपणे-मंदिरोका पाठोंको, उत्थापन करनेके लिये प्रयत्न करती है । परंतु शोच नहीं करती है कि--हम ढूंढको सनातनपणेका तो दावा करनेको जाते है, और प्रतिमापूजन निषेधका पाठ तो एकभी सूत्रसे दिखा-न सकते है, और मंदिरोंके जो जो पाठ सूत्रोंमें है. और जिस मंदिरोंकी सिद्धि रूप पागके हजारो शास्त्रों तो साक्षीभूत हो चुके है. और पृथ्वी माताभी-जिनमंदिरोकों गोदमें बिठाके, साक्षी दे रही है. उन पाठोंकी उत्थापना करनेको हम प्रयत्न करते है. सो तो वीतरग देवकी महा आशातना करके अधिकही हमारा आ. स्माको संसारमें फिरानेका प्रयत्न करते है. इतना विचार नहीं करती है. उनको अधिक-हम क्या कहेंगे? .
॥ इति प्रक्षेप पाठका विचार ॥
॥ अब अंबडजी श्रावकके-पाठका विचार ।। ढूंढनी-पृष्ट. ७८ । ७९ में--उवाईजीका पाठ--" अम्मडस्सण परिव्वायगस्स, णोकप्पई अणउत्थिएवा, अणउत्थिय देवयाणिं वा, अणउत्थिय परिग्गहियाणिं वा अरिहंते चेइयंवा, वंदित्तएवा, नमंसित्तएवा, जावपज्जुवासित्तएवा, णण्णत्थ अरिहंते वा, अरिहंत चेइयाणिवा"
॥ ढूंढनीकाही अर्थ. लिख दिखाते है-अम्बडनामा परिव्राजकको ( णोकप्पई ) नहीं कल्पे. ( अणुत्थिएवा ) जैन मतके सिवाय अन्ययुत्थिक शाक्यादि साधु १ । (अणः) पूर्वोक्त अन्ययु
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