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द्रौपदीजीके-पाठमें-कुतर्को. (१११) लिखा है, जो तूं महासतीकों-जूठा कलंक देके, जिन मूर्तिका पूजन-निषेध, करती है ? । क्योंकि-पंजाबखाते, वर्तमानमेंभी, क्षत्रियों में-मांसादिककी, प्रवृत्ति होतीहै, और स्त्रीयों तो-छूतीभी, नहींहै, उनके घरका आहार तेरेको और दूसरे ढूंढको भी लेनाही पडता है तोपीछे जैनमतको धारणकरके क्यों फिरते हो ! । इसबातसे-द्रोपदीको कलंकित, न कर सकेगी और, सातसो वर्षके पहिलेकी-ज्ञाताधर्मकथा, लिखी हुईहै, वैसा-सुनकर, देखेविना उस कापाठ-कैसे लिखदिखाया ? और सनातन धर्मका दावा करनेवाले-तेरे ढूंढको, ते ज्ञाता सूत्रकापाठ-लिखदिखानेको, कौनसीनिद्रामें पडेथे, जो लिखके--दिखाभी न गये ? क्या तूंही उनोंका उद्धार करनेको-जन्मी पडीहै, जो हजारो ' ज्ञाता धर्मकथाके, पु. स्तकोमें-प्रचलित पाठको, नया मिलाया गयाहै वैसा कहतीहै, ॥
हे ढूंढनी ! ज्ञाताधर्म कथाका पाठतो, यह नया नहीं मिलाया गयाहै, परंतु तुम ढूंढकोही-विना गुरुके मुंडेहुये, नवीन रूपसे-पेदाहोगये हो, सो, थड मूलविना-यद्वातद्वा, बकवाद-करतेहो, परंतु ___यह हद उपरांतका तेरा जूठ, मूढविना दूसरा कौन मानेगा। और--तूं साबूतीदेती हैकि--सूत्रोंमें, तीर्थकर देवकी--मूर्तिपूजाका, पाठ नहीं आया, सो तो तुमको, कुछ--दिखताही नही तो दूसराकोई क्या करें ? क्योंकि, पुण्यात्मा पुरुषोतो--तुमेरे जैसेंको, दिखानेकेलिये-करोडो, बलकन अब्जो, रूपैयेका--व्ययकरके, सूत्रोंका पाठकी-साबूनी करनेको, हजारो 'जिनमंदिरोंसे' यह पृथ्वी भी-- मंडितकरके, चले गयेहै । और धर्मात्मा--पूजतेभीहै । तोपिछे तूंकिस वास्ते पुकार करतीहै कि-द्रौपदीने, धर्मपक्षमें-मूर्ति नहीं पूजी, तो क्या-अधर्मके वास्ते पूनीथी ? जोतूं ऐसा जूठा अनुमान कर
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