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चैत्यका अर्थ प्रतिमा-नहीं. (११५) ॥ अब चैत्यका अर्थ-प्रतिमा, नहिका विचार ।। ढूंढनी-पृष्ट. १०० ओ. १ से-चैत्य चैत्यानि ( चइयाणि) शब्दका अर्थ ज्ञानवान्, यति, आदि-सिद्ध होता है, मूर्ति (प्र. तिमा ) नहीं ॥ ओ. १० सें-यदि कहीं-टीका, टब्बाकारोंने, चेइय शब्दका-अर्थ-मतिमा, लिखा भी है, तो, मूर्ति पूजक-पूर्वाचार्योंने, पूर्वोक्त पक्षपातसे-लिखा है ॥ .
. समीक्षा-हे सुमतिनी ! इतना-जूठ लिखतें तेरेको कुछ भीशंका नहीं होतीहै ! क्योंकि नीतिमे भी कहा है कि-"पादावऽसत्यवचनं पश्चाज्जाता हि कुस्त्रियः अर्थ-नीचस्त्रीयों होती है सो प्रथमसेही-असत्य वचनको जन्म देके, पिछेसेही आप-जन्म ले. तीयां है, इस नीतिका वचनको-सार्थक कियाहो, वैसा-सिद्धहोता है, नही तो इतना-जूठ, क्यों लिखती ? । तूं 'चेइय' शब्दका अर्थ, ज्ञान, ज्ञानवान् , यति, आदिविना-मंदिर, मूर्तिका, नहीं होता वैसा जो-लिखती है । तो क्या-उवाई सूत्रम-चंपानगरीका जे वर्णन है, उनकी-आयमें ही-"पुण्णभद चेहए होथ्था, " वैसा कहकर-सवि. स्तर पणासें 'चेइए' शब्दसे मंदिर, मूर्तिका वर्णन किया है । सो क्या तुंने दिखा नही ? और--पृष्ट ७७ में-बहवे अरिहंत चे. इय, ऐसा-उवाइ सूत्रका, पाठसे-जो तुने--चेइय, शब्दका अर्थमंदिर, मूर्तिका, करके, पाठांतरके बदलेमें-प्रक्षेप रूप, ठहरानेका-- प्रयत्न, कियाथा, सो क्या-भूल गई ? इसका विचार-देख-इस ग्रं. थका पृष्ट. १०३ में।। और पृष्ट. १४३ में-चैत्यस्थापना,करवानेलगजायगे, द्रव्य ग्रहणहार मुनि-हो जायगे॥ ऐसा लिखके "चैत्य स्थापना" से -मंदिर, मूर्तिकी, स्थापना दिखानेके वखत चैत्य श
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