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(८४ ) पार्श्व अवतार अक्षरोंसे ज्ञान नहीं.
और तिनकी आकृतिभी, भव्य पुरुषोंका - भावकी वृद्धि करनेवालीही है. उनको क्या भेषधारीकी तरें - निषेध करती है. ? क्यों कि परम योगावस्थाकी - मूर्त्तिको देखके तो, सारी आलमभी खुस हो जायगी। परंतु तेरी जैसी - साध्वी, कोई पुरुष के संगमें, चित्र निकालेली देखे तो, सभीही निर्भछना करेंगे, तो साक्षात् - भ्रष्ट भेषधारीकी अपभ्राजना सभी क्यौंन करेंगे? जब भ्रष्टकी मूर्ति होगी, तबही निंदनिक होगी ? परंतु सर्वगुणसंपन्न वीतरागदेवकी - मूर्ति, यद्यपि
राग गुणोंसे रहितभी है, तोभी महा पुरुष संबंधी होनेसे, अनादरणीय कभी न होगी. तुम ढूंढको ही चेलेको शिक्षा देते हो. कि, गुरुके आसन पै-बैठना नही. पैर लगाना नही. इत्यादि, तेतीस आसातना सिखाते हो, तो क्या आसनमें- गुरुजी, फस बैठे है. हे ढूंढनी ! तेरेको-लोकव्यवहार मात्र की भी खबर नही है तो शास्त्रका गुज्यको क्या समजेगी. ?
|| अब पार्श्व अवतार ॥
ढूंढनी - पृष्ट ५० ओ ६ से- तुम्हारा पार्श्व अवतार, ऐसे कहके गालो दे तो द्वेष आवे, कि देखो यह कैसा दुष्ट बुद्धि है.
समीक्षा - जब कोई - पार्श्व अवतार, ऐसे कहकर - गालो देवे, उनपर तो ढूंढनीको द्वेष आ जावे. और जो लाखो महापुरुषो, भगवंत संबंधी मूर्ति बनायके, उनके आगे भजन बंदगी करते है, उस मूर्त्तिकी अवज्ञा करने को - पत्थर आदि कहती है, इनका भगवान् पै भक्तानीपणा तो देखो ? कितना अधिकपणाका है. ?
|| अब अक्षरोंसें ज्ञान नही ||
ढूंढ़नी - पृष्ठ १४ ओ १ से. ॥ जिसने गुरुमुखसे - श्रुतज्ञान नहीं पाया, अर्थात् भगवानका स्वरूप नहीं सुना, उसे मूर्तिको
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