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जीवर और भेषधारी. (३) जकी तरह-नहीं मानते हैं, क्यों कि हम जानते हैं कि-बिना गुणों के जाने, बिना गुणों के यादमें ग्रहें-नाम लेनेसे, कुछ लाभ नहीं. हम तो गुण सहित-नाम लेते हैं, सो तो-भावमें ही दाखल है. ___ समीक्षा-हे ढूंढनी ! तूं क्या साक्षात्-पर्वत तनयाका, स्वरूप धारण करके आई है ? जो हमारी समज तूंने मालुम हो गई । तूं भगवान्का-नाम, गुणोंको याद करने के वास्ते लेती हैं. तो हम क्या-गालीयां देने के वास्ते, भगवान्का-नाम लेते है ? वाहरे तेरी चतुराई. ?
॥जीवर और भेषधारी.॥ __ढूंढनी-पृष्ट ४८ ओ ८ से-किसी जीवरका-नाम-महावीर है, तो तुम उसके पैरोंमे पडते हो. ! - समीक्षा-हे ढूंढनी ! किसने तेरे आगे ऐसा कहा कि,-जीवरका नाम महावीर, सो, सिद्धार्थ राजाका-पुत्र है. क्योंकि-महावीर, यह नाम तो, अनादिका अनेक वीर पुरुषोंमें रखाता आया है. परंतु हमारा जो-महावीर नामका, संकेत है, सो तो-त्रिशला नंदनमें ही होनेसे, हम तो उनोंको ही याद करनेवाले है. जिसने जिस वस्तुमें जिनका संकेत किया है, सो तो उनकाही समजता है. दूसरे के अ. भिमायमें-तिसरेकी जरूरी ही क्या है ? ___ ढूंढनी-पृष्ट ४९ ओ. १ लीसें-भेषधारी, और मूर्तिके, विवादमें-कहती है कि, मूर्तिमें-गुण अवगुण दोनोही नहीं, ताते-वंदना करना कदापि योग्य नही. ___ समीक्षा-हे ढूंढनी ? जो भ्रष्ट थयेलो भेषधारी ते, और जो सर्वगुणसंपन्न वीतरागदेवकी-आकृति ते, क्या एक प्रमाणमें करती है ? इहांपर थोडासा विचार कर कि, जिस तीर्थकरोके साथ केवल संबंध हुयेले वर्णका समुदायरूप-नाम मात्र हे,सोभी-कल्याणकारी है.
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