Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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चारनिक्षेपमें-दूंढनीजीका मान. (५५) एक भी जगे सिद्ध नही हो सकता है ? जैसे कि "इंद्र" यह दोवर्णसे, नामका निक्षेप करनेको लगी है, देवताके मालिकमें, और करके दिखाया केवल गूजरके पुत्रमें, इस वास्ते देवताका मालिक रूप वस्तुमें, प्रथम नाम निक्षेप, घटा सकी ही. न ही है.॥ देखो, सत्यार्थ पृष्ट. ७ सें. ११. तक. ॥
॥ और इक्षु रसकी सार वस्तुमें, केवल एक स्थापना निक्षेप ही घटा सकी है. । क्योंकि-कन्यारूप वस्तुमें, " मिशरी" ऐसा नामका निक्षेप करके दिखाया । और-द्रव्य निक्षेप इशु रसके सार वस्तुकी पूर्वावस्थामें, किंवा, अपर अवस्थामें, करनेका था, सो नहीं किया, और केवल मिट्टीका कूज्जारूप दूसरी ही वस्तुमें करके दिखाया. । और ‘भाव निक्षेप' साक्षात्पणे जो इक्षु रसकी सार वस्तु में, करनेका था, सो नही करती हुई मिट्टीके कूज्जेमें ही करके दिखाया, इस वास्ते जैन सिद्धांतके मुजब इस वस्तुमें एक ही निक्षेप घटा सकी है. ॥
॥ अब देखो तीर्थकरका शरीर रूप वस्तुमें, ढूंढनीने अढाई निक्षेप ही घटाया है. जैसे कि ' नाम निक्षेप करनेको लगी तीथंकरकी शरीररूप वस्तुका, और करके दिखाया दूसरा मनुष्यमें.।। और द्रव्य निक्षेप, तीर्थंकरकी बालकपणे रूप पूर्वाऽवस्थामें, और मृतक शरीर रूप अपर अवस्थामें, करणेका था, सो केवल अपर अवस्थामें ही, करके दिखाया, इस वास्ते तीर्थंकर ऋषभदेवके, चार निक्षेपकी सिद्धिमें, अढाई निक्षेपकी ही सिद्धि करके दिखलाया. । देखो इसका विचार, सत्यार्थ पृष्ट. १२ से लेके पृष्ट. १७ तक. ॥.
॥ और. पृष्ट. ७ से लेके, पृष्ट. १७ तक, ऐसे मनः कल्पित लेख लिखके, प्रथमके तीन निक्षेपेको, निरर्थकपणा भी कहती
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