________________
·
( ६४ )
ढूंढनीजीके- आठ विकल्प.
सत्य होगा ? सो इस शंकाको दूर होनेके लिये, किंचित् पुनरा वृत्ति रूप, सिद्धांत से मेलन करके दिखाते है, जिससे विचार करनेका सुगम हो जावें । देखियेके- अनुयोग सूत्रकारने, चार निक्षेपके विना, दूसरा एक भी विचार नही दिखाया है. । तदपि ढूंढनी, तीर्थकर और गणधर महाराजाओंसें-- विपरीत हुई, पूर्वाऽपरके विरोधका विचार किये विना, सत्यार्थ पृष्ट ११ में-
अपणी मनः कल्पनासें-- १. नाम, २ नाम निक्षेप, । ३ स्थापना, ४
स्थापना निक्षेप, । ५ द्रव्य, । ६ द्रव्य निक्षेप, । ७ भाव, । ८ भाव निक्षेप, यह आठ विकल्प खडा करती है । परंतु इतना सोच न किया के, तीर्थकरके सिद्धांतको धका पुहचाके में मेरी क्या गति कर लउंगी ?
प्रथमं इस ढूंढनीने - यह लिखाया के श्री अनुयोग द्वार सूत्रमें आदिही में, वस्त स्वरूपके समजने के लिए, वस्तुके सामान्य प्रकारसे चार निक्षेपे निक्षेपने ( करने) कहै है, वैशालिखके फिर सूत्रपाठका आडंबर दिखाया, फिर आठ विकल्प करके, मिशरी नामकी वस्तुमें, और ऋषभदेव नामकी वस्तुमें, केवल मनः - कल्पना घटाने का प्रयत्न किया. क्यों कि निक्षेप तो करने लगी है इक्षु रसका सारभूत, मिशरी नामकी ' वस्तुका ' उसको ' नाम ' उह राय के, कन्यारूप स्त्रीकी दूसरी वस्तु, ' नामनिक्षेप' बतलाती है सो कौनसा सिद्धांत दिखाती है ? क्यों कि वस्तुरूपे दोनोही अलग अलग है. । और सूत्रकारने वस्तुमें ही, चार निक्षेप करने, वैशा कहा है. । तो क्या इक्षु रसका 'सारभूत ' मिशरी नामकी वस्तु कुछ वस्तुरूपसें नही है ? जो नामका निक्षेपको उठाती है ? | प्रथम ढूंढनी इतनाही समजी नही है के, वस्तु क्या ? और अवस्तु चिज क्या ? तो पिछे 'निक्षेपका' विषयको
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org