Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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स्थापना, और 'स्थापना निक्षेपका विचार. (६५) क्या समजेगी ? । तैसें ही तीर्थकर गोत्र उपार्जन किया हुवा जीवने, नाभिराजाके कुलमें, शरीररूप वस्तुको धारण किये बाद, माता पिता विगरेने गुणपूर्वक, 'ऋषभ' नामका निक्षेप किया है, उनको ढूंढनी 'नाम' ठहरायके, पुरुषरूप दूसरी. 'वस्तुमें' ' नामनिक्षेप' ठहराती है। तो क्या नाभिराजाके पुत्रका शरीर, कुछ वस्तुरूप नहीं है ? जो ढूंढनी सूत्रको धक्का पुहचाके 'नाम' मात्रको ठहराती है ? सूत्रकारने तो वस्तुमें 'नाम निक्षेप करना कहा है । इस वास्ते यह प्रथम निक्षेपके विषयमें, दो विकल्प ही, ढूंढनीका निरर्थक रूपसे हुवा है ।। क्यों कि, इश्शु रसका 'सारभूत ' वस्तु है उसमें, मिशरी नामका निक्षेप करके ही लोको समजते है. । तैसें, प्रथम तीर्थकरका शरीररूप 'वस्तुमें, ऋषभ नामका 'निक्षेप' हुये बाद, जैनी लोकोने तीर्थकरपणे ग्रहण किया है । इस वास्ते, नाम, और नाम निक्षेप, अलग अलग है, वैशा तीनकालमें भी नही होसकता है. ॥
इति प्रथम-नाम, और नामनिक्षेप,का विचार.
___ अब ' स्थापना' और ' स्थापना निक्षेप ' ढंढनीनीने किया हैउनका विचार देखिये.॥
ढूंढनीने-साक्षारूप मिशरीके कूज्जेका आकार मात्रको, ' स्थापना ' ठहराई, । और, मिट्टीका, तथा कागजका, मिशरीके कूज्जेका आकारको,-स्थापना निक्षेप, ठहराया । परंतु इतना सोच न कियाके, जो साक्षारूप मिशरीका आकार है सो तो, भाव निक्षेपका विषयरूप वस्तु है, में स्थापना किस हिसाबसें ठहराती हुं ? क्यों कि उस मिशरीका आकारमें, मिठापण विगरे सर्वगुण 'मिशरीका' विद्यमान है, सो तो भाव निक्षेपका विषय, ढूंढनीके ल
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