Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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सिद्धांत रूप सें - चारनिक्षेप.
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दिक, अथवा चित्र, कूज्जेकी आकृति ( मूर्त्ति ) करके समजाना सो, ' स्थापना निक्षेप' का विषय है २ । कूज्जेकी पूर्वाऽवस्था मि ट्टीकापिंड रूप, अपर अवस्था टुकडे रूप है सो, ' द्रव्य निक्षेप ' का बिषय हैं ३ | और जो साक्षात्पणे मिट्टीका कूज्जा बन्या हुवा है सो, कूज्जाके 'भाव निक्षेप' का विषय है ४ । इति मि कूज्जेका, चार निक्षेपका स्वरूप. ॥
| अब ऋषभदेव के, चार निक्षेप दिखलाते है- जो नाभि राजा के पुत्र में, ' ऋषभ देव ' नाम है सोई, नाम निक्षेप है ? | और जो पाषाणादिककी आकृति है सो ' स्थापना निक्षेप' का विषय है २ । और जौ पूर्वाsपर बाल्यअंत शरीर रूप अवस्था है सो द्रव्य निक्षेपका विषय है ३ । और साक्षात् तीर्थकर पदको प्राप्त हुये है सो भाव निक्षेपका विषय है ४ || अब पुरुषके, चार निक्षेप, दि खाते है - जो पुरुषका नाम, ' ऋषभ देव ' है सो, नाम निक्षेप है १ । उस पुरुषकी, पाषाणादिककी आकृति है सो ' स्थापना निक्षेप ' का विषय है २ और जो पुरुष भावकी, पूर्वापर अवस्था है सो
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और जो पुरुषार्थ करनेके कौ,
' द्रव्यनिक्षेप' का विषय है । योग्यताको प्राप्त हो गया है सो ' भावनिक्षेप ' का विषय है ४ ॥ इसी प्रकार सें - चार चार निक्षेपका स्वरूप, सर्व प्रकारकी दृश्य वस्तुओंमें, योग्यता प्रमाणे विचार लेना ॥
॥ इसी - ढूंढनीजीने इंद्रमें त्रण, । मिशरीमें एक. । और ऋषभदेव, अढाई निक्षेप करके दिखायाथा । उनके हमने चार चार निक्षेप, स्पष्ट पणे लिख दिखाया सो भ्रम तो पाठक वर्गका दूर हो गया होगा, परंतु मूर्ति नामकी वस्तुके, चार निक्षेपको दिखाये बिना, शंकाही रहजायगी, सो, शंका दूर करनेके लिये, मूर्त्ति नामंकी वस्तु के भी 'चार निक्षेप करके दिखलाता हूँ ।।
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