Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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(५६) चारानिक्षेपमें-ढूंढनीजीका ज्ञान. जाती है, परंतु चारनिक्षेपेमें से एक भी निक्षेप, निरर्थक रूप नही है। मात्र विशेष यह है कि जिस निक्षेपसे जो कार्यकी सिद्धि होनेवाली है, सोई सिद्धि होती है. ॥ " जैसे कि " १ हेय पदार्थके चारनिक्षेप है सो तो त्याग पणेकी सिद्धिके करानेवाले है. । और २ ज्ञेय पदार्थके चार निक्षेप है सो ज्ञान प्राप्तिकी सिद्धि करानेवाले है. । और जो परम ३ उपादेय रूप पदार्थ है उनके, चार निक्षेप है सो, आत्माकी शुद्धिकी सिद्धिके करानेवाले है. ॥
॥ देखोइस विषयमें, 'ठाणांग' सूत्रका चोथा ठाणा. छापाकी पोथी के पृष्ट. २६८ में यथा-१ नाम सच्चे, २ ठवण सच्चे, ३ दब सच्चे, ४ भाव सच्चे, ॥ इस पाठसे, चोरो ही निक्षेपको, सत्यरूपे ही ठहराये है. । परंतु, निरर्थकरूपे नही कहे है।
प्रश्र-यह चार प्रकारके सत्यमें, निक्षेप शब्द तो आयाही नहीं है, तुमने कहांसे लिखके दिखाया. ? ॥
॥ उत्तर-जिस जिस जगें सिद्धांतमें, १ नाम, २ स्थापना, ३ द्रव्य, और ४ भाव, इन चारोंका वर्णन होगा उहां पर चार निक्षेपोंका ही वर्णन समननेके है, परंतु भिन्नरूपसे तुमेरे किये हुये, आठ विकल्पतो, दिगंबर, श्वेतांबर, के लाखो पुस्तकमेंसे, एक भी पुस्तकमेंसे न निकलेगा, किस वास्ते तीर्थंकरोंसे और गणधर महापुरुषोंसे, विपरीतपणे जाते हो ? कोइ तो एक बातका उलटपणा करें, अगर, दो चार बातांका, उलटपणा करके दिखावे, परंतु इस ढूंढनीजीने तो, तीर्थकर, गणधरोंका भी, भय छोडके, स्वछंदपणासे, सर्व जैन सिद्धांतोका, तत्व पदार्थोंको ही, उलटपणा करके दिखाया है, न जाने इस ढूंढनीजीको कौनसा मिथ्यात्वका उदय हुवा होगा?॥
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