Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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(५८) .
चार निक्षेपमें-ढूंढनीजीका ज्ञान.
वस्तुमें, । तीर्थकरोके नामादिक है सो तीर्थंकरोंमें, जब यहीनामादिक, चार विकल्प, पिछेसें दूसरी वस्तुमें दाखल किये जावें, तब ही निक्षेप रूपसे कहे जावें, यह जो ढूंढनीजीके मनमें, भूत भराया है, सो केवल सद्गुरुके पाससे सिद्धांतका पठन नही करनेसे ही भराया है, अगर जो सद्गुरुके पाससे, सिद्धांतका पठन किया होत तो, यह शंका होनेका कारण कुछ भी न रहता, क्यों कि, १'इंद्र' २ मिशरी, ३ ऋषभ, ४ देव, आदि जितने शब्द है, सो तो अनादिसें सिद्ध रूपही है, और वस्तुकी उत्पत्ति हुये वाद, योग्यता प्रमाणे, अथवा किसी वस्तुमें रूढिसें, नामका निक्षेप किया जाता है. . जिस वस्तुमें, गुण पूर्वक नामका निक्षेप किया जाता है उ. सको योगिक भी कहते है. । और दो शब्दका मिश्रण करके नामका निक्षेप किया जाता है उनको मिश्र कहते हैं, इसमें विशेष समजूति है सो देखो लक्षणकारका नामनिक्षेपका लक्षणके श्लोकमें, इस वास्ते इंद्ररूप वस्तुमें, इंद्र नामका निक्षेप है सो, व्याकरणादिककी व्युत्पत्तिसें सिद्धरूप “योगिक" शब्द है. । और-मिशरी रूपकी वस्तुमें मिशरी नामका निक्षेप है सो भी "योगिक" ही है. । और तीर्थकरमें, " ऋषभ " शब्द, और "देव" शब्द, यह दोनो शब्दोका मिश्रण करके नामका निक्षेप किया गया सो "मिअरूप" समजनेका है.॥ जब यही इंद्रादिक नामका निक्षेप, दूसरी वस्तुमें किया जाता है, तब इंद्रकी पर्यायके वाचक जो-पुरंदर, वज्र धरोदिक है, उसकी प्रवृत्ति दूसरी वस्तुमें, किई नही जाती है. परंतु दोनो ही वस्तुमें, कहा तो जावेंगा नामका ही निक्षेप । क्यों कि-दोनो ही वस्तुमें, जो इंद्र पदसें-नामका निक्षेप किया है, सो वस्तुकी उत्पत्तिके बाद ही किया गया है, इस निक्षेपके विषयमें कुछ भी फरक नहीं है ? मात्र विशेष यही रहेगा कि, गूजरके पु.
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