Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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नाम निक्षेप सूत्र.
(१७) . ॥ परंतु अरूपी (अर्थात् रूपरहित ) ज्ञान गुणादिक, जो जो वस्तुओ है, उनका निक्षेप विशेष प्रकारसें, कोई आधार वस्तुके योगसेंही, समजनेके योग्य होते है । इस वास्ते करुणा समुद्र गणधर भगवान, ते ते अरूपी वस्तुओंके 'निक्षेपोंका' विशेष बोध करानेके वास्ते, प्रथम वीतराग भाषित तत्त्व समुद्रका एक अंशरूप,
और हमारी नित्य क्रियाका प्रकाशक, जो 'आवश्यक' सूत्र है, उनकाही मुख्यत्वपणा करके, और विशेष प्रकारसें निक्षेपोका बोध करानेके वास्ते, फिरभी विशेष सूत्रकी रचना करते है, उनका पाठ नीचे मुजब.
॥ प्रथम उस आवश्यकका नाम निक्षेप सूत्रं ॥
॥से किंतं श्रावस्सयं, श्रावस्सयं चउव्विहं पण्णत्तं, तंजहा । नामा वस्सयं १ । ठवणा वस्सयं २ । दव्वा वस्सयं ३ । भावा वस्सयं. ४ । से किंतं नामा वस्सयं २ जस्सणं जीवस्स वा, अजीवस्स वा, जीवाणं वा, अजीवाणं वा, तदुभयस्स वा, तदुभयाणं वा, श्रावस्स एति नामं कजइ सेतं नामा वस्सयं. ॥ १ ॥
___अर्थ:-अवश्य करणे योग्य, अथवा आत्माने गुणोंके वश्य करें, अथवा गुणोसें वासित करें, सो क्रियाका वाचक, आवश्यक वस्तुका, चार निक्षेप करते है. ॥ नाम आवश्यक. १ । स्थापना आवश्यक. २ । द्रव्य आवश्यक. ३ । भाव आवश्यक. ४ । नाम आवश्यक क्या है कि जिस जिवका, मनुष्य आदिका । अजीवका, पुस्तक आदिका । अथवा बहुत जीवोंका अजीवोंका। दोनो मिले
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