Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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तीर्थकरों में- कल्पित निक्षेप.
( ४९ )
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समीक्षा - ढूंढनीने सूत्रार्थमें - पष्ट अध्ययन सूत्र १ । और पढ नेवाला २ । यह दो विकल्प ' द्रव्य निक्षेपमें ' कहाथा । इहां तीर्थकर पद रूप भाव प्राप्त होनेवाला प्रथम अवस्थारूप जीवतेको छोडके, एकीला मृतक ही द्रव्य निक्षेप कहती है । इस वास्ते यह कल्पनाही जूठ है । पाठकवर्ग ! द्रव्य, और द्रव्य निक्षेप, शास्त्रका - रने- कुछ अलग नही माने है; मात्र आगम, नोआगम के भेदसे, माने है । और - नोआगमके, तीन भेद किये है। १ जागग सरीर, अर्थात् भाव प्राप्त मृतक शरीर । २ भवि सरीर, अ. र्थात् भावको प्राप्त होनेवाला शरीर । ३ व्यतिरिक्तके अनेक भेद है । अब इहां पर ढूंढनीजीने ऋषभदेवका - भविअ शरीरको तो 'द्रव्य' बनाया । और जाणग शरीरको 'द्रव्यनिक्षेप' ठहराया । विचार करो कि - गणधर पुरुषोंसे विपरीतता कितनी है ! इसीही वास्ते ढूंढनीने, द्रव्यनिक्षेपमें सूत्र, और अर्थ, छोडकर, सात नयोंका जूठा भंडोल दिखाके, अजान वर्गको भुलानेका ही उपाय किया है। जिसको तीर्थंकरोका, और गणधर महाराजाओका भी, भय नही है, उनको कहेंगे भी क्या ? |
ढूंढनी - पृष्ट १७ ओ ६ सें भगवान् असें नाम कर्मवालाचे - तन, चतुष्टयगुण, प्रकाशरूपआत्मा, सो ' भाव ऋषभदेव ' कार्य साधक है | ओ ९ से- शरीरस्थित, पूर्वोक्त चतुष्टयगुणसहित आत्मा, सो 'भावनिक्षेप. यह भी कार्य साधक है । यथा घृतसहित कुंभ घृतकुंभ इत्यर्थः ॥
समीक्षा - पाठकवर्ग ? इस ढूंढनीने भी अपने सूत्रार्थमें - आarunक्रिया और क्रियाकारक साधुरूप एक ही वस्तुमें, भाव निक्षेप लिखा है । और इहां' एक भावनिक्षेप' है, उनके दो रूप
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