Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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( ५२ )
आत्मारामजी, बूढेरायजी.
और जिसका एक निक्षेप, वंदनीय न होगा, उनका चारों निक्षेपभी 'वंदनीय' कभी न होगा || किस वास्ते खोटी कुतर्कों करके, अपणा, और अपणा अश्रितोंका, बिगाडा करलेतेहो, ? सद्गुरुका शरणालियाविना कभी कल्याणका मार्ग हाथ नही लगेगा. इति पर्याप्त मधिकेन ॥
॥ और पृष्ट २१ ओ १० सें लिखा है कि- आत्मारामजी तो, बिचारा पढा हुआथा ही नही. ॥ यहभी ढूंढनीका लेख सत्यही है । क्योंकि, आत्मारामजी पढा हुवा ही नही था, यह बात सारीआलम जानती ही है. मात्र हठीले ढूंढकों के वास्ते तो तूंहीही साक्षात् पार्वतीका अवताररूपे हुई है, उनके वास्ते आत्मारामजी नहीथा, कवत है कि, अंधेमें काणा राजा, तैसा तूं आचरण क रके जो महापुरुषोंको यद्वा तद्वा बकती है सो तो तेरेकोही दुखदाई होगा.
ढूंढनी - पृष्ठ २९ ओ १२ से-बूटेरायजी आदिक संस्कृत नहीं पढेंथे, वे सब मिथ्यावादी है, और असंयमी है, उनका इतबार नही करना चाहीये.
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समीक्षा - पाठक वर्ग ! संस्कृत पढे विना, वचनशुद्धि, नही होती है । यह बात तो सिद्धही है । और जो गुरु मुखसें धारण करके, उतनाही मात्र कहता है. उनको बाधकपणा कम होता है. । और गुरुका अनुयायीपणेही, संयममें प्रवृति करता है, उनका संयममें, कोइ प्रकारका बाधक नही होता है. ॥ परंतु तुम दृढको तो, आजतक जो जो महा पुरुष होते आये उनका सबका, अनादर करके, उठपणा करते हो इस वास्ते, तुमेरा सब निरर्थक है. ॥ संवेगी तैसें नही है. ॥
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