Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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स्थापना निक्षेप सूत्र... (१९) २ चित्तकम्मेवा । ३ पोथकम्मेवा । ४ लिप्पकम्मेवा । ५ गंथिमेवा । ६ वेढिमेवा । ७ पूरिमेवा। ८ संघाइमेवा । ९ अरकेवा । १० वराडएवा । एगोवा, अणे गोवा, सम्भावठवणा वा, असम्भावठवणा वा,आवस्सएत्ति ठवणाठ विजइ सेतं "ठवणावस्सयं" २॥ नामठवणाणं को पइविसेसो णामं आवकहिलं, ठवणा इतरिआ वा, आवकहिया वा ॥
अर्थः-स्थापना आवश्यक क्या है कि-? काष्टमें । २ चित्रमें। ३ पत्र आदिके छेदमें, अथवा लेख मात्रमे ४ लेप कर्ममें 1 ५ ग्रंथ. निमें । ६ वेष्टनक्रिया । ७ धातुके रस पूरणेमें । ८ अनेक मणिकाके संघातमें । ९ चंद्राकार पाषाणमें । १० कौडीमें ॥ यह दश प्रकार से किसीभी प्रकारमें, क्रिया और क्रियावाले पुरुषका अभेद मानके, एक अथवा अनेक,आवश्यक क्रियायुक्त साधुकी आकृ. तिरूपे, किसीमें अनाकृतिरूपेभी, जो स्थापित करना । अथवा आवश्यक सूत्रका पाठ लिखना । उसका नाम "स्थापना निक्षेप" है. २ ॥ नाम, स्थापनामें, इतना विशेष है कि, नामयावत् कालतक रहता है । स्थापना इतरकाल, वा पूर्णकालतकभी रहती है.
इति २ स्थापना निक्षेप सूत्रार्थ.
अब स्थापना निक्षेप सूत्रका तात्पर्य-भगवानके अरूपी ज्ञान गुणका, एक अंशरूप अक्षरों की स्थापनासें, क्या हमारी उपादेय रूप, छ आवश्यक क्रियाका, बोध, आवश्यक शब्दसे नही होता है ? तुम कहोंगे कि होता है, तो पिछे स्थापनानिक्षेप निरर्थक केशा?
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