Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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निक्षेप विषये सिद्धांतकी गाथा. (११) मेसें-एक ही तत्त्वका लोप करनेवाला है, उनको, हजारो तो जैन ग्रंथोंका, और हजारो ही महान् पुरुषोंका, अनादर करके, अज्ञानां धपणेसें, महा प्रायश्चित्तका, गठडा ही, शिर पर उठाना पडता है, कारण यह है कि वह लोप किया हुवा तत्त्व हेसो ग्रंथोंमें व्यापक,
और युक्ति प्रयुक्ति आदिसें सिद्धरूपही होता है, मात्र मूलरूप जैन सिद्धांतोमें, बडी गंभीरताके स्वरूपसें, सूचितपणे होनेसें, वह एक तत्वका लोप करने वाला, नाम धारी उद्धत शिष्यको, प्रगटपणे मालूम नही होनेसे ही, यह प्रकार खडा होता है, इसीही वास्ते उनके पिछे चलने वालोंकों, अनेक जूठ साच बातोंको खडी करनी पडती है, तब ऐसें जैन तत्त्वमें विपर्यास करने वालेके निस्तारका निणर्य कैसे करसकेंगे ? सिद्धांत के अभिप्रायसें देखें तबतो तत्त्वोंके विपर्यास करने वालोंके अनंत संसारका भ्रमणही सिद्ध होता है । इत्यलं विस्तरेण.॥
॥ इहांतक लक्षणकार महाराजने, जो यह चारनिक्षेपके लक्षण बांधे है सो, श्री अनुयोगद्वार सूत्रकी, एक मूल गाथाका ही अर्थ प्रगट करनेके वास्ते बांधे है. । और उस लक्षण कारके अभिप्रायसें ही, हमने भी अर्थ करके दिखाया है, परंतु कुछ अधिकपणेसें नही, लिखा है ॥ सोई सूत्रकी गाथा, इहांपर लिखके भी बतावते है.
.. ॥ तद्यथा ॥ ॥ जथ्थय जं जाणेजा, निख्वेवं निख्विवे निर वसेसं । जथ्थ विय न जाणेजा, चउक्कगं निख्विवे तथ्य ॥ १ ॥
॥ अर्थः-जिहां जिस वस्तुमें, जितने निक्षेपें करणेका जाने, । यहां उस वस्तुमें उतने ही निक्षेपें करें । जिस वस्तुमें अधिक निक्षेचे
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