Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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६०७ ६०७-६२०
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सम्यक्चारित्र का लक्षण रत्नत्रय युक्त तप का फल कैसा योगी परमात्मा का ध्यान करता है कैसा जीव उत्तम सुख को प्राप्त करता है विषय कषाय से युक्त जीव सिद्धि सुख को प्राप्त नहीं होता रुद्र की कथा
४६ जिन मुद्रा सिद्धि सुख का कारण है परमात्मा के ध्यान का फल
४८-४९ चारित्र ही आत्मा का धर्म है
५० जीव स्वभाव से रागादि रहित है
___ ५१ कैसा योगी ध्यानरत होता है ? .
५२ ज्ञानी जीव कर्मों का अल्प काल में क्षय करता है। ५३ अज्ञानी और ज्ञानी का लक्षण
५४-५८ तप रहित ज्ञान और ज्ञान रहित तप व्यर्थ है ५९ तीर्थकर भी तप से ही सिद्धि को प्राप्त करते हैं मात्र बाह्य लिङ्ग का धारक मुनि मोक्षमार्ग का नाश करने वाला है सुखिया स्वभाव के छोड़ने का उपदेश कैसा आत्मा का ध्यान करना चाहिये आत्मा का जानना सरल नहीं विषयों से विरक्त मनुष्य ही आत्मा को जानता है विषय मूढ जीव चतुर्गति संसार में घूमते हैं। विषयों में विरक्त जीव संसार से मुक्त होते हैं । पर द्रव्य में परमाणु प्रमाण राग करने वाला अज्ञानी है नियम से निर्वाण किन्हें प्राप्त होता है ? पर द्रव्य का राग संसार का कारण है समभाव से ही चारित्र होता है यह पंचम काल ध्यान के योग्य नहीं है इस मान्यता का निराकरण ___७३-७५-७७ जिनलिङ्ग धारण कर पाप करने वाले मोक्षमार्गी नहीं हैं
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