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सम्भव है कि इस अकाल में कार्य करने से उसके सदाचार पर धक्का पहुंचे । प्रकृति भी हमें यही बताती है कि असमय में न केवल आत्मिक प्रत्युत शारीरिक भी क्षति होती है। जैसे यदि कोई व्यक्ति अनियत समय पर अनियत भोजन करता है तो वह अपने स्वास्थ्य से हाथ धो बैठता है । दूसरे, मान लिया जाय कि कोई व्यक्ति अंधेरे में घूमने के लिए निकला । इस समय प्रायः अनेक चरित्र-भ्रष्ट चोर डाकू आदि अपने घात में लगे रहते हैं । उनके मिलाप से या तो वह स्वयं चरित्र-भ्रष्ट हो जायगा या वे लोग उसको अपना शत्रु समझ कर हानि पहुँचाएंगे, अतः इससे अवश्य ही आत्म-विराधना और संयम-विराधना होगी । सिद्ध यह हुआ कि स्वाध्याय के समय स्वाध्याय, भोजन के समय भोजन और तप तथा कायोत्सर्गादि के समय तप और कायोत्सर्गादि करने चाहिएं, इसी में श्रेय है । - भाव-सुसंगति उसको कहते हैं, जिससे आत्मा के भाव शुद्ध रह सकें । भाव प्रायः
अच्छे-अच्छे शास्त्रों के स्वाध्याय से शुद्ध होते हैं । जिन ग्रन्थों में उत्तम और सत्य शिक्षाएं होती हैं, उनके अध्ययन का आत्मा पर शीघ्र और अत्यधिक प्रभाव पड़ता है | किन्तु जिन ग्रन्थों में मिथ्या आडम्बर भरा हुआ है, उन पर चित्त में विश्वास ही नहीं होता | किन्तु यह न भूल जाना चाहिए कि संसार में मनुष्यों का बुरे विचारों की ओर जितना झुकाव होता है, अच्छी बातों पर उतना अधिक नहीं होता । हम देखते हैं कि लोग प्रायः धर्म-शास्त्रों के स्थान पर कामोत्तेजक शास्त्रों की ओर विशेष झुकते हैं । फल यह होता है कि वे अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ा चला कर अपना यह लोक और पर-लोक दोनों खो बैठते हैं । अतः जो लोग अपनी वास्तविक भलाई चाहते हैं, उनको कामोत्तेजक उपन्यास आदि के स्थान पर सर्वथा हितकारी शास्त्रों का ही अध्ययन करना चाहिए, जिससे उनके भाव शुद्ध हों और उनका कल्याण हो सके । अन्यथा सदाचार-भ्रष्ट करने वाले शास्त्रों के अध्ययन से निरन्तर अशान्ति के सिवाय और कुछ हाथ नहीं आ सकता । आध्यात्मिक शास्त्रों अर्थात् जिन शास्त्रों में पदार्थों का सत्य स्वरूप स्याद्वाद-शैली से प्रतिपादन किया गया है तथा जिन शास्त्रों में अहिंसा का प्रतिपादन किया गया है उनके स्वाध्याय से जितनी भावों की शुद्धि होती है उतनी अन्य शास्त्रों से नहीं होती । इन्हीं का अध्ययन इसका सर्वोत्तम साधन है ।
इन सब सुसंगतियों के होने पर आत्मा में ज्ञान-रूप अग्नि उत्पन्न होती है, जो कर्म-रूपी ईन्धन को भस्म कर उनसे ढके हुए आत्मा का स्वरूप हमारे सामने प्रकट करती है | हम पहले भी कह चुके हैं कि कर्मों के हेर-फेर में आकर ही आत्मा अपने
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