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आओ संस्कृत सीखें
शो = पतला करना (परस्मैपदी) | पद् = होना (आत्मनेपदी) ष्ठिव् = थूकना (परस्मैपदी) | वि + पद् = नाश होना (आत्मनेपदी) सिव् = सीना (परस्मैपदी) | पुर् = बढ़ना (आत्मनेपदी) सो = नाश होना (परस्मैपदी) | ली = लीन होना (आत्मनेपदी) स्निह् = स्नेह करना (परस्मैपदी) | विद् = विद्यमान होना (आत्मनेपदी) क्षम् = क्षमा करना (परस्मैपदी) | सू = जन्म देना (आत्मनेपदी) इ = जाना
(आत्मनेपदी) | रञ् = रागी होना (उभयपदी)
शब्दार्थ काय = शरीर
(पुंलिंग) | चक्षुस् = आँख (नपुं. लिंग) कीट = कीड़ा (पुंलिंग) | चेतस् = मन (नपुं. लिंग) कुलाल = कुम्हार (पुंलिंग) | वर्मन् = कवच (नपुं. लिंग) विधि = भाग्य (पुंलिंग) | श्रोत्र = कान (नपुं. लिंग) गति = शरण (स्त्री लिंग) | आरुढ = चढ़ा हुआ (विशेषण) पुरन्ध्री = स्त्री (स्त्री लिंग) | नृशंस = क्रूर (विशेषण) रक्षा = रक्षण (स्त्री लिंग) | शरीरिन् = प्राणी (विशेषण) कौतुक = कुतूहल
(विशेषण) संस्कृत में अनुवाद करें : 1. बंदर बालकों की ओर दौडा । बालक त्रस्त हुए (त्रस्) अत: रक्षण के लिए
प्रयत्न करने लगे (यस्) और थक गए (क्लम्) । 2. परंतु भीम परेशान नहीं हुआ (त्रस्) । अतः रक्षण के लिए प्रयत्न नहीं करता था,
वह थका भी नहीं था । कुतूहल से बंदर को देखने के लिए प्रयत्न करता था ।
(सम् + यस्) 3. वह साथ में खेलते (दिव) बालकों को फल देता है । 4. युद्ध में योद्धा बाण फेंकते हैं (निर्+अस्) तथा बाण योद्धाओं को बींधते हैं । 5. वृद्ध होनेवाले मनुष्य के केश जीर्ण होते हैं, दाँत जीर्ण होते हैं, चक्षु और कान
जीर्ण होते हैं, परंतु एक तृष्णा जीर्ण नहीं होती है ।