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आओ संस्कृत सीखें
3-1205 अप् = पानी (स्त्री लिंग) रजस् = धूल (नपुं. लिंग अवनि = पृथ्वी (स्त्री लिंग) शकृत् = विष्ठा (नपुं. लिंग) गोपी = गोपी (स्त्री लिंग) शिव = मंगल (नपुं. लिंग) दिव् = स्वर्ग (स्त्री लिंग) हिम = बर्फ (नपुं. लिंग) मघोनी = इन्द्राणी (स्त्री लिंग) दैव = भाग्य (नपुं. लिंग). युवति = युवति (स्त्री लिंग) आर्य = पूज्य (विशेषण) योषा = स्त्री (स्त्री लिंग) दृढ = मजबूत (विशेषण) अब्ज = कमल (स्त्री लिंग) न्याय्य = न्याययुक्त (विशेषण) असृज् = खून (स्त्री लिंग) सम्पन्न = युक्त (विशेषण) आसन = आसन (स्त्री लिंग) स्वप्य = सोना (विशेषण) यकृत् = कलेजा (नपुं. लिंग)
संस्कृत में अनुवाद करो 1. उस राजा ने दुश्मनों के रक्त द्वारा राक्षसों को संतुष्ट किया । (असृज्) 2. गोपियाँ रवैये द्वारा दही का बिलोना करती हैं, उसी प्रकार देवों ने मेरु का रवैया
कर समुद्र का मंथन किया । (मथिन्) जब भगवान का जन्म होता है तब इन्द्र (मघवन) सभी इन्द्रों के साथ आकर
और विनयपूर्वक भगवान को ग्रहण कर मेरु शिखर पर ले जाकर भगवान का जन्माभिषेक करते हैं।
वृद्धावस्था (जरा) में भी लोग भोग-तृष्णा का त्याग नहीं करते हैं। 5. इस आसन पर आप बैठे और इस आसन पर मैं बहूँ। 6. इस युवक की बुद्धि कुत्ते की पूंछ की तरह वक्र है । (श्वन्) 7. जल से स्नान कर राजा ब्राह्मणों को धन देते हैं। 8. इस पुरुष के स्कंध मजबूत हैं। भुजाएँ प्रशस्य हैं अत: यह पुरुष वृषभ जैसा लगता
9. सूर्य अंधकार का नाश करता है ।