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आओ संस्कृत सीखें
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पाठ - 36|
प्रेरक - (णिगन्त प्रक्रिया) क्रिया करनेवाला कर्ता कहलाता है, कर्ता को क्रिया के लिए प्रेरणा देनेवाला प्रेरक कर्ता कहलाता है।
प्रेरक कर्ता की क्रिया बतानी हो तो धातु से इ (णिग्) प्रत्यय लगता है और धातु उभयपदी बनता है।
उदा. कृ - करोति प्रयुङ्क्ते कुर्वन्तं (प्रेरयति) - कृ + इ (णिग्) = कारि । कारि + अ (शव्) + ति = कारयति, कारयते उदा. शिष्यः धर्म बोधति - शिष्य धर्म को जानता है ।
धर्मं बोधन्तं शिष्यं गुरुः प्रेरयति
गुरु: शिष्यं धर्मं बोधयति। इ (णि) प्रत्यय पर
घट आदि धातुओं का स्वर ह्रस्व होता है । उदा. घट् - घटयति । व्यथ् - व्यथयति ।
प्रथ् - प्रथयति । त्वर- त्वरयति । हेड् - हिडयति । लग् - लगयति । नट् - नटयति । मद् - मदयति ।
ज्वर् - ज्वरयति । 2. कम्, वन्, जन्, जृ (गण ४) कनस् और रज् धातु का स्वर हस्व होता है ।
उदा. कगयति, वनयति, जनयति, जरयति, क्नसयति । उदा. रजयति मृगं व्याध; = शिकारी मृग का शिकार करता है ।
रञ् धातु का उपांत्य न् इ (णिग्) प्रत्यय पर मृग के शिकार अर्थ में लुप्त होता है। अन्यत्र नहीं । उदा. रञ्जयति सभां नटः = नट सभा को रंजित करता है
रञ्जयति रजको वस्त्रम् = रंगारे वस्त्र को रंगता है । 3. कम्, अम् और चम् सिवाय के अम् अंतवाले धातु का स्वर ह्रस्व होता है।
उदा. रम् = रमयति, गमयति, शमयति ।