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आओ संस्कृत सीखें
1288214. रत्नों की चोरी कर और देवांगनाओं का हरण कर । 15. यहाँ मेरा बहुत धन है, हे भाई ! उसको तू ग्रहण कर । 16. कर्म विपाक के परवश हुए जगत को जानने वाले मुनि दुःख में दीन नहीं बनते
हैं और सुख में विस्मित (आनंदित) नहीं होते हैं। 17. अभ्यंतर (काम क्रोधादि) शत्रुओं का मंथन करने में क्रोध के आडंबर से (आवेश
से) लाल नही हुई हो ऐसी पद्मप्रभ प्रभु के देह की कांति आपका कल्याण करे। 18. (मनुष्य) बाहर भेजने पर नौकर को जानता है । दुःख आने पर भाइयों को
जानता (पहिचानता) है, आपत्ति आने पर मित्र को जानता (पहिचानता) है, . और वैभव (ऋद्धि) का क्षय होने पर स्त्री को जानता (पहिचानता) है । 19. भववास से विमुख बनी आत्मा को मोहराजा की नौकर ऐसी इन्द्रियाँ विषम पाश
से बाँधती हैं। 20. असार पदार्थों का भी समूह वास्तव में दुर्जय है। घास द्वारा भी डोरी बनती है
जिससे हाथी भी बंध जाता है। 21. जो खुद के चरित्र द्वारा अपने पिता को खुश करता है, वह पुत्र है । जो पति का
हित चाहती है वह स्त्री है। जो सुख में और दुःख में समान क्रिया वाला है, वह मित्र है, जगत् में ये तीन वस्तु पुण्य करने वाले को प्राप्त होती हैं ।
हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. तं दुरात्मानं निबिडै बन्धनै र्बधान कारागृहे च निक्षिप । 2. पश्यत. मधुव्रतः पुष्पेऽलीनागधु च पिबति । 3. यदा जना असत्यं गृणन्ति तदा सतां हृदयं क्षुभ्नाति । 4. यूयं पुष्पाणां मालां ग्रथ्नीत वृथा न क्लिनीत, त्वं पुष्पं मा मुषाण, यूयन्तु
कुसुमानि मृद्गीथ ।
कलिकालसर्वज्ञप्रभुश्रीहेमचन्द्रसूरेाकरणं दृष्ट्वा पण्डिता मस्तकं धुनन्ति। 6. कन्याः स्वीयान्घटान् जलेनापृणन् । 7. तापसो वृक्षाणां पल्लवैस्स्वीयमुटजमस्तृणात् । 8. जनो वृक्षात्फलानि ग्रह्णाति कटूनि च पर्णानि परिवर्जयति, तदापि
महाद्रुमः सुजन इव पर्णान्युत्सङ्गे धारयति । 9. काले पक्वं धान्यं यथा कृषीवलो लुनाति तथा जातं प्राणिनं कृतान्तो
लुनाति ।