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आओ संस्कृत सीखें
पाठ 16
संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद
1.
हे मित्र ! त्याज्य वस्तुओं में पौरव राजाओं का मन प्रवृत्ति नहीं करता है। उस कारण पति के हाथ के स्पर्श का सुख भी मुझे मिला नहीं ।
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5.
पृथ्वी का शासन करते हुए राम राजा ने पृथ्वी को स्वर्ग जैसी कर दी । 6. कोई भी प्राज्ञ पुरुष स्त्रींयों को स्पृहा सहित देखने में उद्यम नहीं करता है। 7. हड्डियों में धन, मांस में सुख, चमडी में भोग, आंखों में स्त्रियाँ,
गति में वाहन, स्वर में आज्ञा मगर सत्त्व में सब कुछ प्रतिष्ठित है ।
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9.
वास्तव में दुर्दशा में गिरी हुई स्त्रीयों को धैर्य गुण कहाँ से होगा ? पहले के न्याय और पहले के धर्म में यह (राजा) तत्पर हैं ।
जब तक मनुष्य आरंभ बिना का होता है, तभी तक लक्ष्मी विपरीत मुखवाली होती है, परंतु आरंभ सहित मनुष्य के लिए लक्ष्मी स्नेही, चपल नेत्र वाली होती है।
इस पृथ्वी का राज्य पवन युक्त मेघ के समान विलास वाला है, विषयों का भोग प्रारंभ में ही मधुर है। मनुष्य के प्राण घास के अग्रभाग पर रहे हुए जल बिन्दु समान हैं, वास्तव में धर्म ही परलोक की यात्रा में परम मित्र है ।
10. दूसरों के उपकार के लिए नदियाँ बहती हैं। पर के उपकार के लिए वृक्ष फलते हैं। गाय परोपकार के लिए दूध देती है। सज्जन पुरुषों की विभूतियाँ (वैभव ) परोपकार के लिए होती हैं ।
हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद
1.
त्वं दध्ना सहौदनं भुङ्क्ष्व माषान्मा भुङ्क्ष्व ।
2. सोऽक्ष्णा काणोऽस्ति कर्णाभ्यां च बधिरोऽस्ति । प्रातस्तमोभिस्सह क्रोष्टारोऽपि कुञ्जेषु निविशन्ते । गोः पयः प्रकृत्यातिमधुरमस्ति बुद्धिं च पुष्णाति ।
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5.
स्त्रियो वदनेन कमलं गत्या च हंसं जयन्ति ।
6.
सत्यः स्त्रियः पत्युराज्ञां प्रभोराज्ञामिव मन्वते ।
7.
हे वत्स ! रायं लभस्व रायम्, राया विना किमपि नास्ति जनाः कथयन्ति यद् 'वसु विना ना पशुः ' ।