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आओ संस्कृत सीखें
हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. विद्यार्थिनो यथा पिपठिषन्ति तथा न प्रयियतिषन्ते । 2. चिकीर्षितानि कर्माणि अपूर्णानि सन्ति जनश्च मुमूर्षति । 3. एष प्रासादः पिपतिषति, अतोयूयं तं न प्रविविक्षत । 4. कुसुमान्यवचिचीषया सुधा उद्यानं गताऽस्ति । 5. मुमुषिषु मुषित्वा पिपृच्छिषुः पृष्ट्वा विविदिषु विदित्वा जिघृक्षु र्गृहीत्वा
सुषुप्सु सुप्त्वेव कृतकृत्यो भवेत् तथा तस्या दुःखेनानेकशो रुरुदिषुरहं तां
कन्यामस्मिन्पट आलिख्यात्र चानीय कृतकृत्यो भवामि । 6. जना धनं संचिचीषन्ति, अपि नार्पिपयिषन्ति । 7. यूयं न मुमूर्षथ तथान्यं न जिघांसत । 8. शूर्पणखायाः कथनेन रावणो सीतां स्वान्तःपुरमानिनीषांचकार
सीतायाश्चाग्रहेण रामो मृगं जिघृक्षांचकार । 9. वल्लभेन सह् युद्ध्वा कोऽपि नृपः स्वदोःशक्तिं नादिद्दक्षतापि सर्वे रक्षणायेष्टदेवतामसुस्मूर्षन्त ।
पाठ 36
संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. अज्ञानी मनुष्य को सुख से आराध सकते हैं (समझा सकते हैं) (और) विशेष
ज्ञानी मनुष्य को बहुत सुख से आराध सकते हैं। (परंतु) थोड़े ज्ञान से गर्विष्ठ
मनुष्य को ब्रह्मा भी खुश नहीं कर सकते हैं। 2. यदि तुम संसार से डरते हो और मोक्षप्राप्ति की इच्छा करते हो, तो इन्द्रिय पर
विजय पाने के लिए बड़ा पुरुषार्थ करो । 3. यहाँ से (हमारे पास से) वह दैत्य, लक्ष्मी (शोभा) को पाया है, (इसलिए) यहाँ
से (हमारे पास से) विनाश के योग्य नहीं हैं, विष वृक्ष को भी बडा करने के बाद
स्वयं ही उसे नष्ट करना अयोग्य है । 4. फैले हुए तेज द्वारा हमेशा दिशाओं को प्रसन्न करनेवाला यह सूर्य किसको अधिक
आनंद नही देता है। कोई भी पाप वाला व्यापार (क्रिया) नहीं करूंगा और दूसरे के पास नहीं कराऊँगा, सुखपूर्वक रागरहित होकर बैलूंगा - इस प्रकार जिसके मन में इतना