Book Title: Aao Sanskrit Sikhe Part 02
Author(s): Shivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 362
________________ आओ संस्कृत सीखें 33363 चन्दनदासः मुझे पता नहीं है। चाणक्यः (थोडा हँसकर) क्यों नहीं जानते हो? हे श्रेष्ठी ! सिर पर भय है, उसका प्रतिकार अतिदूर है। चन्दनदासः (मन में बोलता है) क्या यह दुःख आ पड़ा है। ऊपर आकाश में मेघ की गर्जना है और स्त्री दूर है । सिर पर साँप पड़ा है और दिव्य औषधियाँ हिमालय में हैं। उज्जयिनी नगरी के मार्ग में बीच में एक बड़ा पीपल का वृक्ष है, उसके ऊपर हंस और कौआ रहता है । एक बार ग्रीष्म ऋतु में एक थका हुआ मुसाफिर उस झाड़ के नीचे धनुष में बाण जोड़कर सोया है। थोडी देर में उसके मुख पर से झाड की छाया चली गई, अत: सूर्य के तेज से उसके मुख को व्याप्त देखकर उस वृक्ष पर रहे हंस ने दया से अपनी पाँखों को फैलाकर उसके मुख पर छाया की। उसके बाद अत्यंत निद्राधीन उस व्यक्ति ने अपना मुख चौडा किया। . दूसरे के सुख को सहन नहीं करनेवाला कौआ अपने दुर्जन स्वभाव से उसके मुख में बीट (विष्टा) कर भाग गया। उसी समय उस मुसाफिर ने उठकर ऊपर देखा, उसने वहां रहे हँस को देखा। उसने बाण से हंस को मार दिया। इसीलिए कहा जाता है दुर्जन के साथ न रहें!' दुर्जन व्यक्ति दुष्ट आचरण करता है और निश्चय ही उसका फल सज्जनों को मिलता है । रावण ने सीता का हरण किया और बंधन समुद्र को हुआ।

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