Book Title: Aao Sanskrit Sikhe Part 02
Author(s): Shivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 343
________________ आओ संस्कृत सीखें 2317 पाठ 28 संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद जिसने परमार्थ को जाना है, ऐसे पंडितों की तू अवज्ञा मत कर । तृण के समान हल्की लक्ष्मी उनको (पंडितों को) रोक नहीं सकती है, नये मद की रेखा से श्याम हए हैं गंडस्थल जिनके ऐसे हाथियों को कमल के तंतु रोक नहीं सकते हैं। 2. उस राजर्षि ने इस प्रकार विचार किया, 'अहो ! उन कुमंत्रियों का मैंने सन्मान किया, यह निश्चय ही राख में होम किया है। 'यह (ऋषि) शाप नहीं दे दे' इस हेतु से भयभीत बनी वे (स्त्रियाँ) शिकारी से भयग्रस्त हिरणियों की भाँति एक दूसरे को मिले बिना जल्दी जल्दी भाग गई । 4. वे (राजा) उसकी ओर अभिमान से आवेश करते थे, द्वेष करते थे और देखते थे। उनको इसने बाणों से ढक दिया (और) उनके प्राणों को भी हर लिया। 5. राजा ने रत्नों को ग्रहण किया (और) सोने को ग्रहण किया! ग्रहण करके उसको दिया, वह चला (और) खुश हुआ । 6. 'स्वामी ! अवसर आने पर माँगुंगी, मेरा वरदान न्यास के रूप में रहे, इस प्रकार कैकेयी बोली राजा ने भी वह (बात) कबूल की। 7. उसने हमारा वचन सुना । 8. दुष्यन्त राजा ने शकुन्तला से शादी की थी। 9. विद्यागुरुओं ने सभी शास्त्र उसको क्रमश: बताए। 10. दो घुड़सवारों को उसने देखा और पूछा, अरे ! इस सेना में खलभलाहट (भागदौड़) क्यों हो रही हैं ? 11. 'मेरे बारे में तू अप्रसन्न न हो और मेरे बारे में तू विरुद्ध न हो' इस प्रकार वह बोला। उसने लज्जा की और सखी को बोलने का आग्रह किया। हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. यः समुद्रमधुक्षत पृथ्वींचाऽदुग्ध तस्य जयकेशिनृपस्येयं पुत्र्यस्ति। 2. राजा भोजनादौ नाऽराङ्क्षीत्, जलक्रीडाद्या क्रीडया नाऽरंस्त, काय विकारस्य च चेष्टां नाऽरौत्सीत् । 3. सा कन्या “मम पतिः कर्ण एवास्ति' इत्यबुद्ध, अतस्त्वमपि तां क न्यां तथाऽबुद्धाः।

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