Book Title: Aao Sanskrit Sikhe Part 02
Author(s): Shivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 344
________________ आओ संस्कृत सीखें 33182 4. हे राजन् ! अस्याः कन्याया विषये त्वामन्तरायो मा व्याहत । 5. वचसा कस्याऽपि मर्म मा भिद्ध्वम् । . 6. अहं युष्मानधुनैवास्मार्ष यूयं च अधुनैवाऽदृग्ध्वम् । 7. दमयन्ती हंसात्प्रशंसामश्रौषीत्, मनसा च नलमवृत । 8. हे स्वामिन् ! खलानां वचसा यथा मामत्याक्षी: तथा जिनभाषितधर्मं मा त्याक्षीः। 9. वयमस्माकं क्षेत्रस्य भूमिममास्महि । 10. गोपालः सायं गाः स्वगृहमनेष्ट । 11. सो ऽमृताऽपि प्रतिज्ञां नात्याक्षीत् । पाठ 29 संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. कोई भी पाप नहीं करे, कोई भी दुःखी नहीं हो, और सारा संसार मुक्त हो, ये विचार मैत्री कहलाते हैं। 2. राम जैसे दशरथ थे, दशरथ जैसे रघुराजा थे, रघुराजा जैसे अजराजा भी थे और अजराजा जैसा दिलीपवंश था, राम की यह कीर्ति आश्चर्यकारी है । मेरे वैराग्य का रंग दूसरों को ठगने के लिए था, धर्म का उपदेश मनुष्यो के रंजन के लिए था, विद्या का अध्ययन वाद के लिए था, हे प्रभु ! हास्य करनेवाला (करानेवाला) मेरा खुद का कितना (चरित्र) मैं (आपको) कहूँ । 4. 'तुम मेरे हृदय में बसते हो' इस प्रकार मुझे प्रिय जो तुमने बोला, उसको मैं कपट मानता हूँ। 5. मेरे इस जीवन से क्या? और बहुत से तप से भी क्या ? क्योंकि खुद के पुत्र की हार कान को सुनने में आई। 6. उन्होंने लंबे समय से खाली पड़े हुए किसी आश्रम स्थान का आश्रय लिया; सूखे पत्ते आदि का भोजन किया और घोर ऐसा तप किया । 7. उसने खाखरे के पेड़ के पत्ते लेकर रहने के लिए झोपड़ी बनाई जो कि मृगों के लिए और मुसाफिरों के लिए (भी) ठंडी छाया देनेवाली अमृत की प्याऊ (जैसी) थी। 8. जितने में युवावस्था में (पिता का) सामने से उपकार करने के लिए (बदला

Loading...

Page Navigation
1 ... 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366