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आओ संस्कृत सीखें
जो सुख चक्रवर्ती को भी नही है और जो सुख इन्द्र को भी नहीं है, वह सुख यहाँ लोक प्रवृत्ति से रहित साधु को है ।
6.
7.
वसंत ऋतु में ठंडी से भयभीत को यल द्वारा गाया गया, मानों कानो से सुनने की इच्छावाले न हों, इस प्रकार पानी के भीतर रहे कमल खड़े हो गए ।
8. जंबूद्वीप के मध्य में पर्वतो में मुख्य मेरु नाम का सोने का बडा पर्वत है, वह देदीप्यमान औषधियों का भंडार है और वह सभी देवों के रहने का स्थान है। 9. तुझे इन्द्र जैसा पति और जयंत जैसा पुत्र मिले, तुम इन्द्राणी जैसी बनो, दूसरी आशिष तेरे योग्य नहीं है ।
10. उसके बाद सीता के स्वयंवर के लिए जनक राजा द्वारा आमंत्रित विद्याधर राजा वहाँ आकर मंच पर बैठे ।
11. उसके बाद सखियों द्वारा घिरी हुई, दिव्य आभूषणों को धारण (पहनना) करने वाली, पृथ्वी पर चलने वाली मानों देवी न हो, ऐसी जनक राजा की पुत्री (सीता) वहाँ आई ।
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12.
जो
सुबह में है वह दोपहर में नहीं है, जो दोपहर में है वह रात में नहीं है, इस संसार में पदार्थों की अनित्यता ही दिखाई पड़ती है ।
13. मेरे दोनों नयन हमेशा (हे प्रभु) आपके मुख को निहारते रहो, मेरे दोनों हाथ आपकी सेवा में लगे रहो, और दोनों कान आपके गुणों को सुनने में मग्न हों। 14. यदुवंश रूप समुद्र में चन्द्र समान, कर्म रूपी सूखे घास के लिए अग्नि समान, अरिष्टनेमि (२२ वें) भगवान आपके पाप को नष्ट करने वाले बनें । 15. हे भद्रे ! तुम कौन हो ? अथवा इस जिनालय में क्यों आई हो ?
वह बोली, 'हे राजन् ! आप मुझे नहीं पहिचानते ? मैं वास्तव में सभी राजवृन्दों ने जिसके चरण सेवे हैं ऐसी राजलक्ष्मी हूँ, तेरी इच्छित वस्तु को प्राप्त कराने के लिए आई हूँ, कहो, आपका क्या प्रिय करूँ ?
16. इस भवसागर में जन्मांतर में भाई, मित्र व पदार्थों के साथ हुए नाना प्रकार के संबंध, विविध कर्म के पराधीन प्राणियों को पुनः वे अबाधित संबंध होते है । 17. यह उस इन्द्र का मित्र दुष्यन्त है ।
18. थकान के बाद सोने वाले को निद्रा वज्रलेप की तरह लग जाती है (आ जाती
है ) ।
19. पवित्र दिन है, पवित्र दिन हैं, खुश हो जाओ, खुश हो जाओ ।