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आओ संस्कृत सीखें
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पाठ 30
संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. हे राजन् ! आप लक्ष्मी को वरें ! शत्रुओं को ढक दिया । पृथ्वी को वरें, अत:
अब सुखपूर्वक बैठ, गुरु की स्तुति करो और संध्या विधि को करो और यश द्वारा
इस भुवन को ढक दो। ... 2. जैसे पार्वती शंकर में संग वाली हुई और लक्ष्मी कृष्ण में संगम वाली हुई, उसी प्रकार वह (कन्या) तेरे संग वाली हो और शुभ के साथ संगवाली हो ।
हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. सकला लब्धयो यं श्रिताः स गौतमो गणभृयुष्मार्क श्रियं पुष्यात् । 2. सरस्वती देवी सदास्माकं मुखकमले सान्निध्यं क्रियात् । 3. एष पुत्रो विद्यायाः पारं यायात् । 4. अहं लक्ष्मीवान्भूयासं त्वं च पुत्रवान् भूयाः । 5. एते दुष्टा मृषीरन् । 6. विवेकमुत्साहं चाऽमुञ्चद्भयो युष्मभ्यं युष्माकं पुरुषार्थः सिद्धिं देयात् ।
पाठ 31
संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. आभूषण आदि के उपभोग से प्रभु (राजा) प्रभु नहीं होता है (परंतु) शत्रुओं से
जिनकी आज्ञा पराभूत नहीं होती हैं, ऐसे आपके समान प्रभु कहलाता है । 2. हे जिनेन्द्र! आपके दर्शन से आज मेरा जन्म सफल हआ है, मेरी क्रिया सफल
हुई है और मेरा देह धारण करना सफल हुआ है। 3. हे स्वामी ! आपकी रुप लक्ष्मी को देखने के लिए इन्द्र भी समर्थ नहीं है (और)
आपके गुणों को कहने में बृहस्पति भी शक्तिशाली नहीं है। आकाश जैसा जल है (और) जल जैसा आकाश है, हंस जैसा चंद्र है और चंद्र जैसा हंस है, कुमुद जैसे आकार वाला तारा है और तारा जैसे आकारवाले फूल
है
5. हे मृगलोचना ! तुम्हारे मुख के आगे चंद्र तो पिंडीभूत काजल से बना हुआ हो,
ऐसा लगता है। 6. सोई हुई, अकेली, भोली, विश्वासवाली और सती ऐसी दमयन्ती को छोड़ते हुए